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Shani Dev Ki Mahima: शनि देव से उलझना सम्राट विक्रमादित्य को पड़ा महंगा, इस तरह टूटा था अहंकार

Shani Dev Ki Mahima धार्मिक मान्यता है कि शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः साधक विधि विधान से कर्मफलदाता की पूजा-अर्चना करते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो शनि देव की कुदृष्टि पड़ने पर जातक के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। जातक को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sat, 29 Jul 2023 12:49 PM (IST)
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Shani Dev Ki Mahima: शनि देव से उलझना सम्राट विक्रमादित्य को पड़ा महंगा, इस तरह टूटा था अहंकार
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Shani Dev Ki Mahima: शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि देव को समर्पित है। इस दिन श्रद्धा भाव से शनि देव की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः साधक विधि विधान से कर्मफलदाता की पूजा-अर्चना करते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो शनि देव की कुदृष्टि पड़ने पर जातक के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। जातक को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। प्राचीन समय में सम्राट विक्रमादित्य ने भी शनि देव की शक्तियों को हल्के में लेने की भूल की थी। इसके चलते उन्हें जीवन में अकल्पनीय मुश्किलों से गुजरना पड़ा था। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

कथा

सम्राट विक्रमादित्य तत्कालीन समय में एशिया नरेश थे। इतिहासकारों का कहना है कि उन्होंने रोमन राजा जूलियस सीजर को भी युद्ध में परास्त किया था। शकों को परास्त करने के चलते उन्हें सम्राट की उपाधि दी गई। उनका साम्राज्य पूरे एशिया में फैला हुआ था। अतः उन्हें एशिया नरेश भी कहा जाता था। एशिया नरेश, आदिशक्ति के परम भक्त थे। सम्राट विक्रमादित्य हर वर्ष धूमधाम से नवरात्रि मनाते थे। एक बार नवरात्रि के दौरान धर्म चर्चा हुई। इस चर्चा में शनि देव भी उपस्थित थे।

उसी समय ज्योतिषियों ने सम्राट विक्रमादित्य की कुंडली देख उन्हें शनि देव की पूजा करने की सलाह दी। सम्राट विक्रमादित्य ने शनिदेव को भगवान मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद शनिदेव के साथ उनकी बहस हो गई। तत्क्षण शनि देव ने कहा- भविष्य में आपको शनि देव की उपासना करने की आवश्यकता पड़ेगी। यह कहकर शनि देव चले गए। तब सम्राट अहंकार में आकर बोले- सही समय पर शनि महाराज चले गए। मैं उनकी चुनौती को स्वीकार्य करता हूं। धर्म पंडितों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। हालांकि, सम्राट नहीं माने।

कुछ महीनों के बाद शनि देव व्यापारी बन सम्राट के महल आए। उस समय सम्राट ने उनका खूब आदर सत्कार किया। सम्राट को यह ज्ञात नहीं हुआ कि व्यापारी शनि देव हैं। शनि देव ने कहा-मेरे पास एक ऐसा घोड़ा है जो एक छलांग में स्वर्ग पहुंच जाता है और दूसरी छलांग में पृथ्वी पर आ जाता है। व्यापारी की बात सम्राट को रास न आई। उन्होंने कहा- पहले मैं स्वर्ग की सैर करूंगा। उसके बाद ही घोड़े का दाम दिया जाएगा।

यह कहकर स्र्माट घोड़े पर सवार हो गए। शनि देव के वचनानुसार घोड़ा एक छलांग में आसमान पहुंच गया, लेकिन दूसरे छलांग में सम्राट को जंगल में जा पटका। इसके पश्चात, सम्राट विक्रमादित्य की कठिन परीक्षा शुरू हुई। कहते हैं कि शनि देव की कुदृष्टि के चलते सम्राट विक्रमादित्य चंद दिनों में फकीर बन गए और एक दिन मौत की दहलीज पर आ खड़े हुए।

उस समय उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ। तत्क्षण सम्राट विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा याचना की। शनि देव बड़े ही दयालु हैं। उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य को माफ़ कर दिया। तब सम्राट ने शनिदेव से विनती की कि जिस तरह उन्होंने सम्राट की परीक्षा ली। उस तरह किसी को दुख और दर्द नहीं देंगे। शनिदेव ने सम्राट की याचिका स्वीकार्य की। वर्तमान समय में शनि देव किसी व्यक्ति की कठिन परीक्षा नहीं लेते हैं।

डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'