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Balaram Jayanti 2023: कब है बलराम जयंती? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Balaram Jayanti 2023 सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलराम का जन्म हुआ है। अतः इस दिन बलराम जयंती मनाई जाती है। जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज भाई बलराम को बलदाऊजी भी कहा जाता है। इस दिन विधि विधान से कृष्ण कन्हैया संग बलराम जी की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 28 Aug 2023 06:09 PM (IST)
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Balaram Jayanti 2023: कब है बलराम जयंती? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Balaram Jayanti 2023: सनातन पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलराम जयंती मनाई जाती है। इस प्रकार, साल 2023 में मंगलवार 5 सितंबर को बलराम जयंती है। इसे 'हल छठ' भी जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलराम का जन्म हुआ है। अतः इस दिन बलराम जयंती मनाई जाती है। जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज भाई बलराम को बलदाऊजी भी कहा जाता है। इस दिन विधि विधान से कृष्ण कन्हैया संग बलराम जी की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-

शुभ मुहूर्त

ज्योतिषियों की मानें तो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी सोमवार 04 सितंबर को संध्याकाल 04 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 05 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 05 सितंबर को बलराम जयंती मनाई जाएगी। साधक दोपहर तक बलदाऊ भैया यानी बलराम जी की पूजा उपासना कर सकते हैं।

पूजा विधि

बलराम जयंती के दिन ब्रह्म बेला में उठकर जगत के पालनहार भगवान विष्णु संग शेषनाग को प्रणाम करें। शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में शेषनाग ही बलराम के रूप में अवतरित हुए थे। नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें। इसके बाद नवीन वस्त्र धारण कर सूर्य देव को जल दें। अब भगवान श्रीकृष्ण संग बलराम जी की पूजा विधि-विधान से करें। पूजा के अंत में आरती अर्चना कर सुख और समृ्द्धि की कामना करें। विशेष कार्यों में सिद्धि प्राप्ति हेतु साधक उपवास भी रख सकते हैं। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ कर व्रत खोलें। 

डिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'