Gayatri Jayanti 2023: गायत्री जयंती पर इस तरह करें वेदों की जननी की पूजा, सभी संकटों का होगा निवारण
Gayatri Jayanti 2023 धार्मिक मान्यता है कि गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को सभी कष्टों से निजात मिलता है। साथ ही सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। अगर आप भी सुख शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं तो निर्जला एकादशी के दिन विधिवत माता गायत्री की पूजा करें।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 31 May 2023 09:50 AM (IST)
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Gayatri Jayanti 2023: आज निर्जला एकादशी और गायत्री जयंती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि निर्जला एकादशी के दिन माता गायत्री की उत्पत्ति हुई है। अतः इस दिन विधि-विधान से माता गायत्री की पूजा उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को सभी कष्टों से निजात मिलता है। साथ ही सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। अगर आप भी सुख, शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं, तो निर्जला एकादशी के दिन विधिवत माता गायत्री की पूजा करें। आइए, पूजा विधि जानते हैं-
पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले जगत के पालनहार भगवान विष्णु और वेदों की जननी मां गायत्री को स्मरण कर दिन की शुरुआत करें। नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें। तत्पश्चात, आचमन कर व्रत संकल्प लें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इस दौरान गायत्री मंत्र का जाप करें। इस समय गायत्री मंत्र का कम से कम 5 बार जरूर जाप करें। इसके बाद सबसे पहले पूजा गृह में चौकी पर माता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। अब माता की पूजा फल, फूल, धूप-दीप, अक्षत चन्दन, जल आदि करें। इसके बाद गायत्री चालीसा का पाठ करें-
॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड । शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम । प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥ ॥ चालीसा ॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥ अक्षर चौबिस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥ शाश्वत सतोगुणी सतरुपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥ हंसारुढ़ सितम्बर धारी । स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥ पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अदभुत माया ॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ तुम्हरी महिमा पारन पावें । जो शारद शत मुख गुण गावें ॥ चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥ महामंत्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥ सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी । काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥ ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥ तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥ महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥ जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥ तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥ ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥ सकलसृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥ जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥ मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित है जावें ॥ दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥ गृह कलेश चित चिंता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥ संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥ भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥ घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥ जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ॥ जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ॥ सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥ अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥ ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी । आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥ बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ । धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥ सकल बढ़ें उपजे सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥ ॥ दोहा ॥ यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥अंत में आरती-अर्चना कर माता गायत्री से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। इस दिन निर्जला एकादशी भी है। अतः शारीरिक क्षमता अनुसार व्रत या उपवास करें। संध्याकाल में आरती करने के पश्चात फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद सबसे पहले ब्राह्मणों को दान दें। इसके बाद व्रत खोलें। डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।