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क्या सच में हैं 33 करोड़ देवी-देवता? धर्म ग्रंथों में इतनी बताई गई है संख्या

इस बात को लेकर हमेशा संशय की स्थिति बनी रहती है कि क्या सच में हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की संख्या 33 करोड़ है। असल में हिंदू शास्त्रों में 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 कोटि देवी-देवताओं (Hindu Devi Devta) का वर्णन किया गया है। ऐसे में आइए जानते हैं इसका सही अर्थ क्या है और 33 कोटि देवी-देवताओं कौन-कौन से हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 05 Jun 2024 01:34 PM (IST)
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क्या सच में हैं 33 करोड़ देवी-देवता? (Picture Credit: Freepik)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है, जिसे लेकर यह धारणा बनी हुई है कि हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता है, जबकि असल स्थिति इससे अलग है। तो चलिए जानते हैं कि असल में हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की संख्या कितना मानी गई है और इन सभी का कहां निवास होता है।

क्या है कोटि का अर्थ

कोटि के संस्कृत में दो अर्थ होते हैं - एक करोड़ और दूसरा सर्वोच्च। लेकिन आम बोलचाल की भाषा में कोटि शब्द को करोड़ के रूप में देखा गया, जिससे यह माना जाने लगा  कि हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की संख्या 33 करोड़ है। हालांकि यहां कोटि का अर्थ सर्वोच्च है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि 33 कोटि देवी-देवता कौन-से हैं।

ये हैं 33 कोटि देवी-देवता

  • 8 वासु - 1. आप 2. ध्रुव 3. सोम 4. धर 5. अनिल 6. अनल 7. प्रत्यूष 8. प्रभाष
  • 11 रुद्र - 1. मनु 2. मन्यु 3. शिव 4. महत 5. ऋतुध्वज 6. महिनस 7. उम्रतेरस 8. काल 9. वामदेव 10. भव 11. धृत-ध्वज
  • 12 आदित्य - 1. अंशुमान 2. अर्यमन 3. इंद्र 4. त्वष्टा 5. धातु 6. पर्जन्य 7. पूषा 8. भग 9. मित्र 10. वरुण 11. वैवस्वत 12. विष्णु
  •  इंद्र
  •  प्रजापति

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गाय में होता है सभी का वास

सनातन मान्यताओं के अनुसार, गाय माता में भी 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना गया है, इसलिए हिंदू धर्म में गौ सेवा को इतना महत्व दिया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गाय के सींगों में भगवान शिव और विष्णु जी का वास है। वहीं, गाय के उदर यानी पेट में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट (माथे) में 11 रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, आंखों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती माता निवास करती हैं। मुख में गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं वास करती हैं। इसका वर्णन भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में विस्तृत रूप से किया गया है।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।