Acharya Vidyasagar: मानवमात्र को प्रेरणा देता है आचार्य विद्यासागर का जीवन, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें
जैन पंथ के पूज्य संत आचार्य विद्यासागर को उनके उत्कृष्ट आध्यात्मिक ज्ञान के लिए देशभर में जाना जाता था। मात्र 22 साल की उम्र में उन्होंने आचार्य ज्ञानसागर द्वारा दिगंबर साधु के रूप में दीक्षा ली थी। ऐसे में आइए जानते हैं आचार्य विद्यासागर जी महाराज से जुड़ी खास बातें जो व्यक्ति मात्र को प्रेरणा देने का काम करती हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Acharya Vidyasagar Maharaj: आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने 18 फरवरी 2024 ने सल्लेखना विधि द्वारा समाधि ली। उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित 'चंद्रगिरि तीर्थ' में 'सल्लेखना' करके देह का त्याग किया। आचार्य जी के देहत्याग से पूरे जैन समाज में शोक की लहर है। उनके समाधि लेने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़ी शख्सियतों ने भी शोक व्यक्त किया।
ये हैं खास बातें
आचार्य विद्यासागर का जन्म कर्नाटक के बेलगांव जिले में हुआ था। महाराज के तीन भाई और दो बहनों ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था। उनके माता-पिता ने भी उनसे ही दीक्षा लेकर समाधि प्राप्त की थी। आचार्य श्री विद्यासागर ने अब तक 500 से अधिक मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक दीक्षाएं दी हैं।ऐसा करने वाले वह देश के पहले आचार्य हैं, साथ ही उन पर 56 एचडी की जा चुकी हैं। मान्यताओं के अनुसार, आचार्य श्री विद्यासागर जैन धर्म के पहले ऐसे संत हैं, जिन्हें उनके गुरु द्वारा समाधि मरण से पहले ही आचार्य पद सौंप दिया गया था। उन्हें यह पद 1972 में सौंपा गया था, तब उनकी आयु केवल 26 वर्ष की थी।
इस विषयों के थे ज्ञाता
आचार्य विद्यासागर जी को हिंदी और संस्कृत सहित मराठी और कन्नड़ आदि भाषाओं का भी ज्ञान था। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई पुस्तकें भी लिखी, जिसमें से मूक माटी महाकाव्य काफी लोकप्रिय हुआ। वहीं, उनकी सिंह नाम की कविता को कई शैक्षणिक संस्थानों ने अपने पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। इसके अपने जीवनकाल में साथ ही उन्होंने नर्मदा का नरम कंकर, तुम डूबों मत लगाओ डुबकी, तोता क्यों रोता, शारदा स्तुति आदि कई पुस्तकें लिखी हैं।
इन सभी के लिए किया कार्य
आचार्य विद्यासागर जी ने अपने जीवनकाल के दौरान गौ सेवा, मातृभाषा हिंदी, बालिका शिक्षा, आयुर्वेद, हथकरघा जैसे कई विषय पर समाज का मार्गदर्शन करने का काम किया। साथ ही आचार्य जी ने कई अनमोल प्रवचन भी दिए जो इस प्रकार हैं -- इंडिया नहीं भारत बोलो
- शाकाहार अपनाओ गोवंश की हथियारों को रोको
- स्वदेशी को बढ़ावा दो
- हिंदी को अनिवार्य करो
- समाज के संपन्न लोग, दो गरीब बच्चों को गोद लेकर उन्हें पढ़ाएं।
- पर्यावरण की सुरक्षा व्यक्ति दायित्व है
- दूसरों की भलाई के लिए सुखों का त्याग ही सच्ची सेवा है
- दो सूत्रों का पालन करो - अहिंसा, जी और जीने दो
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