Adi Shankaracharya: भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं आदि गुरु शंकराचार्य, जानिए उनके विषय में
Adi Guru Shankaracharya सदियों तक पंडितों द्वारा लोगों को शास्त्रों के नाम पर गलत शिक्षा दी जाती रही थी। आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म का नए ढंग से प्रचार-प्रसार किया और लोगों को सनातन धर्म के सही मायने समझाए। आज शंकराचार्य को एक उपाधि के तौर पर देखा जाता है जो समय-समय पर एक योग्य व्यक्ति को सौंपी जाती है।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Thu, 21 Sep 2023 03:10 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Sri Adi Shankaracharya: आदिगुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया इसलिए यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य जी ने हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने का कार्य किया है। धर्म को लेकर लोगों में फैलाई जा रही तरह-तरह की भ्रांतियों को उन्होंने मिटाने का काम किया।
कौन थे आदि शंकराचार्य?
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को हुआ था। भगवान शिव के अवतार शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु था। वह शास्त्रों का अच्छा ज्ञान रखते थे और माता का नाम आर्यम्बा था। बचपन में उनका नाम शंकर रखा गया और आगे चलकर वह आदि गुरु शंकराचार्य कहलाए। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संन्यासी बन गए थे। उनका निधन केवल 32 साल की उम्र में हो गया था।
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आदि शंकराचार्य की अनमोल शिक्षाएं
श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने इस जगत को मिथ्या बताते हुए ईश्वर को सत्य बताया। उनका मानना था कि मूर्ख लोग ही ईश्वर को वास्तविक न मानकर संसार को वास्तविक मानते हैं। जबकि ज्ञानी लोगों का मुख्य उद्देश्य अपने आप को भम्र व माया से मुक्त करना और ईश्वर व ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित करना है।
उन्होंने हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार अलग दिशाओं में चार मठों की स्थापना की जो इस प्रकार हैं - उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पश्चिम दिशा में द्वारका में शारदा मठ, दक्षिण दिशा में श्रृंगेरी मठ और पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ।
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