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Aditya Hrudayam Stotram: कुंडली में सूर्य की स्थिति होगी प्रबल, इस विशेष समय पर करें आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ

Aditya Hrudayam Stotram कुंडली में सूर्य की स्थिति सुधारने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कई सारे उपाय बताए गए हैं जिनमें से एक सूर्योदय के समय आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना भी है जो जातक भगवान सूर्य को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें इस स्तोत्र (Aditya Hrudayam Stotram Benefits) का पाठ अवश्य करना चाहिए जो इस प्रकार है -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sun, 26 Nov 2023 07:00 AM (IST)
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Aditya Hrudayam Stotram: कुंडली में सूर्य की स्थिति होगी प्रबल

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Aditya Hrudayam Stotram: ज्योतिष शास्त्र में सूर्यदेव को ग्रहों का राजा माना गया है। उनकी पूजा से पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि में बढ़ोतरी होती है। साथ ही कुंडली से ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है, जिसकी कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल होती है उन्हें जीवन में कभी परेशान नहीं होना पड़ता और कुंडली में सरकारी नौकरी के योग भी बनते हैं।

कुंडली में सूर्य की स्थिति सुधारने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कई सारे उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक सूर्योदय के समय आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना भी है, जो जातक भगवान सूर्य को प्रसन्न करना चाहते हैं, उन्हें इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए, जो इस प्रकार है-

॥आदित्यहृदय स्तोत्र॥

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।

उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।

वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।

सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।

तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।

नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।

एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥॥

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