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Aghori: कैसा होता है अघोरियों का जीवन? जानिए उनसे जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें

अघोरियों को उनकी वेशभूषा और उनके रहन-सहन से अगल ही पहचाना जा सकता है। स्वाभाविक तौर पर इन्हें देखकर कोई भी डर सकता है। अघोरियों के तौर तरीके और रहन-सहन एक आम इंसान से बेहद अलग होता है। आज हम आपको इनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं तो सुनने में बेहद अजीब लग सकती हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Tue, 02 Jul 2024 02:55 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2024 02:55 PM (IST)
Aghori Facts कैसा होता है अघोरियों का जीवन?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अघोरी मुख्य रूप से भगवान शिव के साधक होते हैं। इनके तौर-तरीके और पहनावा एक आम व्यक्ति के काफी अलग होता है। अघोरी बनने की पहली शर्त यही है कि व्यक्ति को अपने घृणा को निकालना होता है। इसलिए समाज जिन चीजों से घृणा करता है, अघोरी पंथ उसे ही अपनाता हैं। एक अघोरी को न तो जीवन का मोह होता है और न ही मृत्यु का डर।

इनकी की जाती है आराधना

अघोरी बाबा भी शिवजी के अघोरनाथ रूप की उपासना करते हैं, जिसका वर्णन श्वेताश्वतरोपनिषद में मिलता है। इसके साथ ही बाबा भैरवनाथ को भी अघोरी अपना आराध्य मानते हैं। भगवान शिव के अवतार माने गए अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना गया है।

शमशान में करते हैं वास

अघोरी वही बन सकता है, जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुका है। जहां एक आम व्यक्ति श्मशान से दूरी बनाए रखना चाहता है, वहीं  अघोरी शमशान में ही वास करना पसंद करते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही यह भी माना गया है कि श्मशान में की गई साधना का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।  

ऐसे होती है साधना

जब एक अघोरी किसी शव के ऊपर पैर रखकर साधना करता है, तो वह शिव और शव साधना कहलाती है। इस साधना में प्रसाद के रूप में मुर्दे को मांस और मदिरा चढ़ाई अर्पित की जाती है। अघोरी एक पैर पर खड़े होकर महादेव की साधना करते हैं और शमशान में बैठकर हवन करते हैं।

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ये हैं कुछ चौकाने वाली बातें

अघोरी अपने पास नरमुंड यानी इंसानी खोपड़ी रखते हैं, जिसे‘कापालिका’ कहा जाता है। साथ ही वह इसका प्रयोग भोजन के पात्र की तरह भी करते हैं। अघोरी अकसर कच्चे मांस यहां तक की मानव शव का भी भक्षण करते हैं।  अघोरियों की एक पहचान यह भी है कि वह किसी से कुछ नहीं मांगते। अघोरी अपने शरीर पर चिता की राख लपेटे रहते हैं और चिता की अग्नि पर ही अपना भोजन पकाते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


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