Ahoi Ashtami 2024: अहोई अष्टमी पर करें गणेश जी के इस कवच का पाठ, हर समस्या से मिलेगी संतान को सुरक्षा
इस बार अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर यानी आज मनाई जा रही है। इस तिथि पर माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु के लिए कठिन व्रत करती हैं। यह तिथि देवी अहोई की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इसका पालन करने संतान प्राप्ति में आ रही समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही इस दिन (Ahoi Ashtami 2024 Date) गणेश जी की पूजा भी होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत बेहद पुण्डदायी माना जाता है। इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और माता अहोई की आराधना करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही यह व्रत उन्हें अवश्य रखना चाहिए, जिन्हें संतान से जुड़ी मुश्किलों का सामन करना पड़ रहा है, क्योंकि इसके प्रभाव से संतान संबंधी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
वहीं, अगर आप इस व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) को रख रहे हैं, तो इस दिन भगवान गणेश की पूजा भी जरूर करें। इसके साथ उनके हरिद्रा कवच का पाठ करें। ऐसा करने से आपकी संतान को बप्पा की कृपा से रोग-दोष से सुरक्षा मिलेगी।
।।हरिद्रा गणेश कवच।। (Ganesh Kavach Ka Path)
शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥
अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥
गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥