Akhurath Sankashti Chaturthi 2023: इस विधि से करें अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पर बप्पा की पूजा, जानें मंत्र और लाभ
Akhurath Sankashti Chaturthi 2023 संकष्टी का अर्थ है संकट से मुक्ति। इसलिए संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त अच्छे भाग्य और सफलता के बीच आने वाली बाधा को दूर करने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं। सनातन धर्म के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश (Lord Ganesh Puja) की पूजा की जाती है। इन्हें अन्य देवताओं में प्रथम पूज्य माना जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Akhurath Sankashti Chaturthi 2023: इस माह अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 27 दिसंबर 2023 को रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है, जिनकी पूजा से बुद्धि, विद्या और ज्ञान का वरदान मिलता है। भगवान गणपति को शास्त्रों में प्रथम पूज्य माना गया है,
जो जातक इस विशेष दिन बप्पा की आराधना करते हैं और उनके लिए उपवास रखते हैं उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में यह साल की अंतिम संकष्टी चतुर्थी है, तो इस दिन से जुड़े कुछ नियम जान लेते हैं।
अखुरथ संकष्टी गणेश चतुर्थी पूजा अनुष्ठान
इस दिन साधक सुबह जल्दी उठते हैं और दूर्वा घास और ताजे फूल चढ़ाकर भगवान गणेश की पूजा विधि अनुसार करते हैं। हर पूजा अनुष्ठान की तरह इस दौरान भी दीपक जलाया जाता है। पूजा के अंत में, जिस महीने में पूजा की जा रही है, उस महीने के लिए विशिष्ट व्रत कथा पढ़ी जाती है। संकष्टी व्रत शुक्ल पक्ष के दौरान विनायक चतुर्थी पर रखे जाने वाले व्रत से अलग होता है।
विनायक चतुर्थी पर, बप्पा की पूजा दोपहर के दौरान की जाती है, जबकि संकष्टी की पूजा चंद्रोदय के बाद की जाती है। इस दिन के व्रत को बहुत फलदायी माना गया है। ऐसे में हर किसी को इस दिन का उपवास जरूर रखना चाहिए।
व्रत के लाभ
संकष्टी का अर्थ है संकट से मुक्ति। इसलिए, संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त अच्छे भाग्य और सफलता के बीच आने वाली बाधा को दूर करने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं। सनातन धर्म के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इन्हें अन्य देवताओं में प्रथम पूज्य माना जाता है।
गणेश पूजन मंत्र
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति. करो दूर क्लेश ।।
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