Sanjeevani Buti: जब एक अप्सरा ने की थी संजीवनी बूटी लाने जा रहे हनुमान जी की मदद, पढ़ें रोचक कथा
Sanjeevani Buti मेघनाद की शक्ति के प्रहार से जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। तब हनुमान जी उनके लिए संजीवनी बूटी लेने गए। रास्ते में एक अप्सरा ने उनकी मदद की।
By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Fri, 18 Sep 2020 08:40 AM (IST)
Sanjeevani Buti: मेघनाद की शक्ति के प्रहार से जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। तब हनुमान जी उनके लिए संकटमोचन बनें और लंका से सुषेण वैद्य को लेकर आए। उन्होंने बताया कि इस शक्ति बाण का इलाज हिमालय के द्रोणाचल पर्वत के शिखर पर पाई जाने वाली संजीवनी बूटी है। उसे सूर्योदय से पूर्व ही लाना होगा। तभी लक्ष्मण जी के प्राण बच सकते हैं। राम भक्त हनुमान जी संजीवनी बूटी को लेने के लिए निकल पड़े। जब रावण को इस बात की सूचना मिली तो उसने हनुमान जी को रोकने के लिए षड़यंत्र रचा। उसने कालनेमि को इस कार्य को सौंपा, ताकि हनुमान जी समय से उस संजीवनी बूटी को लेकर न आ पाएं।
रावण ने कालनेमि से कहा कि हनुमान को रोकने के लिए माया रचो, जिससे उनकी यात्रा में विघ्न उत्पन्न हो जाए। इस पर कालनेमि ने कहा कि रामदूत हनुमान को माया से मोहित कर पाने में कोई भी समर्थ नहीं है। यदि वह ऐसा करता है तो निश्चित ही उनके हाथों मारा जाएगा। इस पर रावण ने कहा कि यदि तुम उनकी बात नहीं मानते हो, तो फिर उसके ही हाथों मरना होगा। इस कालनेमि ने सोचा कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि वह हनुमान के हाथों ही क्यों न मरे। उसने अपनी माया से हनुमान जी के रास्ते में एक सुंदर कुटिया का निर्माण किया और एक ऋषि का वेश धारण कर उसमें बैठ गया।
इस बीच आकाश मार्ग से जा रहे हनुमान जी को प्यास लगी, तो वे सुंदर कुटिया देखकर नीचे आ गए। उन्होंने कालनेमि बने ऋषि को प्रणाम किया और पीने के लिए जल मांगा। तब कालनेमि ने कहा कि राम और रावण में युद्ध हो रहा है। राम जी ही विजयी होंगे। मैं यहां से सब देख रहा हूं। उसने अपने कमंडल की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसमें शीतल जल है, आप इसे ग्रहण करो। तब हनुमान जी ने कहा कि इतने जल से उनकी प्यास नहीं बुझेगी। कोई जलाशय बताएं।
तब कालनेमि ने हनुमान जी को एक जलाशय दिखाया और कहा कि वहां जल पीकर स्नान कर लें। फिर वह दीक्षा देगा। हनुमान जी जलाशय में पहुंच गए और स्नान करने लगे, तभी एक मकरी ने उनका पैर पकड़ लिया। उन्होंने उसका मुख फाड़ दिया, जिससे वह मर गई। तभी वहां एक दिव्य अप्सरा प्रकट हुई। उसने हनुमान जी से कहा कि श्राप के कारण उसे मकरी बनना पड़ा था। आपके दर्शन से मैं पवित्र हो गई और मुनि के श्राप से मुक्त भी हो गई। अप्सरा ने बताया कि आश्रम में बैठा ऋषि एक राक्षस है, जिसका नाम कालनेमि है।
यह बात जानकर हनुमान जी तुरंत कालनेमि के पास गए और बोले कि मुनिवर! सबसे पहले आप गुरुदक्षिणा ले लीजिए। मंत्र बाद में दीजिएगा। इतना कहकर हनुमान जी ने उस कालनेमि को अपनी पूंछ में लपेट लिया और पटक कर मार डाला। मरते हुए कालनेमि का राक्षस स्वरुप सामने आ गया। उसने मरते हुए राम का नाम लिया। राम नाम से उसका भी उद्धार हो गया।