Annaprashana Sanskar: कैसे किया जाता है अन्नप्राशन संस्कार और क्या है इसका महत्व, जानें यहां
Annaprashana Sanskar हिंदू धर्म में मनुष्य के पैदा होने से मरण तक 16 संस्कार किए जाते हैं। इन सभी का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 23 Aug 2020 05:00 AM (IST)
Annaprashana Sanskar: हिंदू धर्म में मनुष्य के पैदा होने से मरण तक 16 संस्कार किए जाते हैं। इन सभी का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है। हालांकि, आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में ये सभी संस्कार केवल नाम के रह गए हैं। ऐसे में जागरण आध्यात्म की यह कोशिश है कि हम आपको हिंदू धर्म के सभी संस्कारों के बारे में विस्तार से बता पाएं। इन्हीं 16 संस्कारों में से 7वां संस्कार है अन्नप्राशन। आइए ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र से जानते हैं इस संस्कार के बारे में। अन्नप्राशन वह संस्कार है जब शिशु को पारंपरिक विधियों के साथ पहली बार अनाज खिलाया जाता है। इससे पहले तक शिशु केवल अपनी माता के दूध पर ही निर्भर रहता है। यह संस्कार बेहद महत्वपूर्ण है।
अन्नप्राशन संस्कार का महत्व:अन्नप्राशन संस्कृत के शब्द से बना है जिसका अर्थ अनाज का सेवन करने की शुरुआत है। इस दिन शिशु के माता-पिता पूरे विधि-विधान के साथ बच्चे को अन्न खिलाते हैं। कहा गया है अन्नाशनान्यातृगर्भे मलाशालि शद्धयति जिसका अर्थ होता है माता के माता के गर्भ में रहते हुए जातक में मलिन भोजन के जो दोष आ जाते हैं उनका नाश हो जाता है।
कब और कैसे किया जाता है अन्नप्राशन संस्कार:जब बालक 6-7 महीने का हो जाता है और पाचनशक्ति प्रबल होने लगती है तब यह संस्कार किया जाता है। शास्त्रों में अन्न को ही जीवन का प्राण बताया गया है। ऐसे में शिशु के लिए इस संस्कार का अधिक महत्व होता है। शिशु को ऐसा अन्न दिया जाना चाहिए जो उसे पचाने में आसानी हो साथ ही भोजन पौष्टिक भी हो।
शुभ मुहूर्त में देवताओं का पूजन करने के पश्चात् माता-पिता समेत घर के बाकी सदस्य सोने या चाँदी की शलाका या चम्मच से निम्नलिखित मन्त्र के जाप से बालक को हविष्यान्न (खीर) आदि चटाते हैं। ये मंत्र शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ । एतौ यक्ष्मं वि वाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः॥ है। अर्थात् हे 'बालक! जौ और चावल तुम्हारे लिये बलदायक तथा पुष्टिकारक हों। क्योंकि ये दोनों वस्तुएं यक्ष्मा-नाशक हैं तथा देवान्न होने से पापनाशक हैं।'
इस संस्कार के अन्तर्गत देवों को खाद्य-पदार्थ निवेदित होकर अन्न खिलाने का विधान बताया गया है। अन्न ही मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है। उसे भगवान का कृपाप्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिये।