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बद्रीनाथ मंदिर की आरती 132 वर्ष पुरानी!

बदरीनाथ मंदिर में गाई जाने वाली आरती लगभग 132 वर्ष पुरानी है। ऐसा दावा जिले के स्यूपुरी गांव के महेंद्र सिंह बत्र्वाल ने किया है। उनका कहना है कि इसकी हस्तलिखित पांडुलिपी आज भी सुरक्षित है। उनका दावा है कि उनके परदादा स्व. धनसिंह बत्र्वाल द्वारा हस्तलिखित आरती ही मौजूदा आरती की मूल कृति है।

By Edited By: Updated: Fri, 07 Jun 2013 02:29 PM (IST)

रुद्रप्रयाग। बद्रीनाथ मंदिर में गाई जाने वाली आरती लगभग 132 वर्ष पुरानी है। ऐसा दावा जिले के स्यूपुरी गांव के महेंद्र सिंह बत्र्वाल ने किया है। उनका कहना है कि इसकी हस्तलिखित पांडुलिपी आज भी सुरक्षित है। उनका दावा है कि उनके परदादा स्व. धनसिंह बत्र्वाल द्वारा हस्तलिखित आरती ही मौजूदा आरती की मूल कृति है।

बद्रीनाथ मंदिर में गाई जाने वाली आरती की पांडुलिपि जिले के स्यूपुरी(वीरजौणा) के निवासी महेंद्र सिंह बत्र्वाल के घर में सुरक्षित है। श्री बत्र्वाल का दावा है कि उनके परदादा स्व. धनसिंह बत्र्वाल ने इसकी रचना की थी। इस पांडुलिपि में दर्ज आरती और वर्तमान में गाई जाने वाली आरती में पूरी समानता है। पांडुलिपित में 11 पदों की आरती की है, जोकि वर्तमान आरती से चार पद ज्यादा हैं। साथ ही इसमें चारधाम यात्रा की आरती भी शामिल है। हालांकि, आरती में समानता होने के बावजूद संयोजन भिन्न हैं और कुछ शब्दों में भी अंतर हैं।

पांडुलिपि में आरती 'अगम पंत अपार गमिता, निर्मल मान सरोवरम, श्रीबद्रीनाथ के हिमालजलथल, श्रीब्रह्म नारद सेवितम' से शुरू होती है, जबकि वर्तमान आरती 'पवन मंद.' से शुरू होती है, जोकि इस पाण्डुलिपि की आरती का पांचवा पद है। पवन मंद के स्थान पर पांडुलिपि में पौन मंदिर सुगंध शीतल लिखा गया है। पवन शब्द का आशय पावन से होता है। वहीं कुछ शब्दों का भी अंतर है। जैसे वर्तमान आरती में शक्ति गौरी गणोश के स्थान पर श्री शक्ति गौरी गणोश, वर्तमान आरती में इंद्र चंद्र है, जबकि पांडुलिपि चंद्र इंद्र है, इसी तरह सिद्ध मुनिजन के स्थान पर शकल मुनिजन है। वहीं यक्ष किन्नर करत कौतुक के स्थान पर पांडुलिपि में दक्ष किन्नर करत कौथिग है। गढ़वाली भाषा में कौथिग के स्थान पर कौतुक है। महेंद्र सिंह बत्र्वाल का दावा है कि पांडुलिपि का विश्लेषण करने पर प्रतीत होता है कि ये बदरीनाथ आरती की मौलिक कृति है, जिसका शोध किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके परदादा की अन्य पाडुलिपियां भी उनके पास सुरक्षित हैं। उधर, संस्कृति विभाग के निदेशक बीना भट्ट कहती है कि यह शोध का विषय है, यदि इस पांडुलिपि को उपलब्ध कराया जाए तो इस पर शोध के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

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