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बाल-शिवाजी को थी अर्जुन बनने की चाह

बड़े-बुजुर्गों पर ही नई पीढ़ी के गठन का दायित्व है, जिसे माता जीजाबाई ने सफलतापूर्वक निबाहा और शिवाजी का मजबूत व्यक्तित्व गठन में सफल हुईं!

By Preeti jhaEdited By: Fri, 14 Aug 2015 03:12 PM (IST)
बाल-शिवाजी को थी अर्जुन बनने की चाह

एक किशोरवय बालक अपने बुजुर्ग से कह रहा था - 'दादा, आज मां ने मुझसे कहा कि मुझे भी अर्जुन की तरह वीर बनना चाहिए। भला मैं अर्जुन की तरह कैसे बन सकता हूं? उनके मार्गदर्शक तो स्वयं भगवान कृष्ण थे। मुझे ऐसी सुविधा कहां?" उस बालक के दादा ने कहा - 'बेटा, भगवान तो आज भी सबका मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हैं। वे हमेशा हर किसी की किसी न किसी रूप में सहायता करने को तत्पर हैं। पर हम उसके लिए ग्रहणशील कहां हैं?"

'यह ग्रहणशीलता क्या होती है?" बालक ने अगला सवाल किया। तब उसके दादा ने उसे समझाया - 'जब कोई व्यक्ति स्वयं को ईश्वरीय कार्यों के प्रति समर्पित करता है। अपनी पूरी निष्ठा के साथ संकीर्ण स्वार्थों को त्यागते हुए उनमें जुट पड़ता है तो उसकी बढ़ती निष्ठा के अनुरूप वह आधार बन पड़ता है, जिस पर प्रतिष्ठित हो ईश्वरीय शक्ति क्रीड़ा कर सके। महानता के प्रति समर्पण तुच्छ को भी महान बना देता है। नगण्य-सा तिनका भी हवा के वेग से मीलों ऊंचा उठ जाता है। बूंद अपनी महानता की ललक के आधार पर ही सागर से एक होती और महासागर का गौरव पाती है।"

बालक उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था। उसने कहा - 'आपकी बातें तो बहुत अच्छी हैं, पर मुझे मेरी स्थिति के अनुरूप सलाह दीजिए कि क्या करें, कैसे करें?" तब उसके दादा बोले - 'तुम जागीर के सभी लोगों से घुलो-मिलो, उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करो, उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करो। इस तरह वे तुम्हें अपना मानेंगे। ईश्वर की संतानों की सेवा ही ईश्वरीय कार्य है। तुम्हारी बढ़ती लगन को देखकर भगवान तुम्हें मार्गदर्शन देंगे और तुम अर्जुन की तरह दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन व सत्प्रवृत्तियों का संवर्द्धन कर सकोगे।" यह सुनकर बालक में जोश का संचार हुआ।

अर्जुन बनने की चाह रखने वाले यह बालक थे वीर शिवाजी और उनमें इस तरह महानता के बीज बोने वाली मां थीं जीजाबाई। शिवाजी में महानता के बीजों को अंकुरित-पल्लवित करने के लिए खाद-पानी जुटाने का श्रेय उनके दादा कोणदेव को जाता है। बड़े-बुजुर्गों पर ही नई पीढ़ी के गठन का दायित्व है, जिसे माता जीजाबाई ने सफलतापूर्वक निबाहा और शिवाजी का मजबूत व्यक्तित्व गठन में सफल हुईं।