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Bhagavad Gita: पाप करने के लिए क्यों विवश हो जाता है मनुष्य, भगवान श्री कृष्ण ने बताइ है वजह और बचाव के उपाय

Bhagavad Gita Updesh भगवद गीता को हिंदू धर्म ग्रंथों में एक मुख्य स्थान दिया गया है। गीता का उपदेश भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध की भूमि में दिया गया सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है। इस ज्ञान के द्वारा ही अर्जुन को सही और गलत के बीच का अंतर पता चल सका और इसी के आधार पर अर्जुन ने युद्ध में विजय हासिल की।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 25 Nov 2023 05:02 PM (IST)
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Bhagavad Gita भगवत गीता से जानिए पाप से बचने का उपाय।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Bhagwat Geeta Teachings: महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। यह उपदेश जितना उस दौरान प्रासंगिक था उतना आज भी है। क्योंकि  आज के समय में मनुष्य का जीवन ही एक युद्ध बनता जा रहा है। ऐसे में आप यहां जान सकते हैं कि किन परिस्थियों के कारण मनुष्य पाप में भागीदार बनता है और इससे किस प्रकार बचा जा सकता है।

यह दिया उत्तर

केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥”

इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से यह प्रश्न पूछता है, कि मनुष्य न चाहते हुए भी बुरे कर्म क्यों करता है। जिसके उत्तर में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि मनुष्य की वासना और निहित स्वार्थ के चलते ही वह पाप करने के लिए विवश हो जाता है।

यह है सबसे बड़ा कारण

पाप करने की सबसे बड़ी वजह मनुष्य की काम भावना (किसी चीज को पाने की इच्छा) है क्योंकि काम वासना से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से भ्रम पैदा होता है, जिससे सबसे पहले बुद्धि नष्ट हो जाती है और यही मनुष्य के विनाश का कारण बनती है।

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मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन

भगवान श्री कृष्णा आगे कहते हैं कि जिस प्रकार धुआ अग्नि को ढक देता है, ठीक उसी तरह काम, मोह और वासना भी मनुष्य के ज्ञान को ढक देती है। इन्हीं कारणों के चलते मनुष्य पाप करने के लिए विवश हो जाता है।

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ऐसे बचें पाप से

भगवान श्री कृष्ण पाप से बचने के कुछ उपाय भी गीता में बताते हैं। जिसके अनुसार मनुष्य को आसक्ति या विरक्ति के प्रभाव के अधीन नहीं होना चाहिए। जब किसी व्यक्ति में आसक्ति और विरक्ति का अभाव होता है तो उस जीवन को ही उत्तम माना जाता है।

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