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Bhagavad Gita Gyan: भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया वह ज्ञान जिससे आप भी बन सकते हैं सफल

Bhagavad Gita Gyan भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के रणभूमि में अर्जुन के मन में धर्म और युद्ध के बीच चल रहे ध्वन्ध को गीता के उपदेश के माध्यम से समझाया था। उन्हीं उपदेशों को समझने से वर्तमान के समय में भी व्यक्ति सफलता हासिल कर सकता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Sat, 10 Sep 2022 06:31 PM (IST)
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Bhagavad Gita Gyan: भगवद गीता को जीवन का सार माना जाता है जिसमें सफलता के कई रहस्य छिपे हुए हैं।

नई दिल्ली, Bhagavad Gita Gyan: श्रीमद्भगवद गीता को जीवन का सार माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि महाभारत के रणभूमि में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर धनुर्धर अर्जुन का मार्गदर्शन किया था। वर्तमान समय में भी गीता के उपदेश को समझने से व्यक्ति सफलता के मार्ग पर चलने लगता है। भगवद गीता (Geeta Updesh) के अनुसार व्यक्ति सदिवचारों से और धर्म के पथ पर चलने से भगवान के चरणों में स्थान हासिल कर सकता है। आइए गीता के माध्यम से जानते हैं कि किस तरह व्यक्ति जीवन में पा सकता है सफलता।

गीता के इन उपदेश से जानें सफलता का रहस्य (Bhagavad Gita Updesh)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।

भगवद गीता के अनुसार केवल कर्म पर ही व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन उसका फल कैसा होगा यह कोई नहीं जानता है। इसलिए फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहना ही समझदारी का काम है और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उससे अधिक लगाव न हो।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।।

गीता में बताया गया है कि विषय अथवा वस्तु के बारे में निरंतर सोचने से व्यक्ति मानसिक रूप से उससे जुड़ाव महसूस करने लगता है। इससे उनमें इच्छा पैदा होती है और इस इच्छा की पूर्ति ना होने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए व्यक्ति को किसी से इतना जुड़ाव नहीं रखना चाहिए जिसके कारण वह स्वयं पर काबू ही ना रख पाए।

चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।

तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः ।।

इस श्लोक के माध्यम से श्री कृष्ण बता रहे हैं कि चिंता से दुःख की उत्पत्ति होती है और किसी अन्य कारणों से नहीं। इसलिए जो व्यक्ति चिंता से दूर रहता है वह सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त रहता है। इसलिए चिंता को कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दें क्योंकि इससे केवल दुःख की प्राप्ति होती है।

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।

सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते ।।

इस श्लोक में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति मान-अथवा अपमान में एक समान व्यवहार करता है। जो मित्र और प्रतिपक्ष में रहते हुए भी समान रूप से कार्य करता है। जो किसी प्रकार के अभिमान से रहित है उसे श्रेष्ठ अथवा गुणवान व्यक्ति माना जाता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में अपना व्यवहार और संयम नहीं खोना चाहिए।

डिसक्लेमर

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