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Bhagavad Gita Gyan: भगवद गीता में बताया है जीवन को सरल बनाने का रहस्य, आप भी जानिए

Bhagavad Gita Gyan गीता के ज्ञान से व्यक्ति को जीवन के रहस्यों के विषय में ज्ञान होता है साथ ही वह अपने जीवन को सुचारु रूप से आगे बढ़ाता है। भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने जीवन को सरल बनाने के कई उपाय बताए हैं।

By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Mon, 10 Oct 2022 05:53 PM (IST)
Bhagavad Gita Gyan: भगवद गीता में बताया है जीवन को सरल बनाने का रहस्य, आप भी जानिए
Bhagavad Gita Gyan: गीता से जानिए जीवन और धर्म के विषय में जरूरी बातें।

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Bhagavad Gita Gyan: हिंदू धर्म में श्रीमद भगवत गीता को बहुत ही पवित्र ग्रंथ के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि जो भी इसका श्रवण या पाठन करता है उसे जीवन के कई रहस्यों का ज्ञान हो जाता है। भगवत गीता में ना केवल महाभारत के युद्ध का वर्णन किया गया है, बल्कि धर्म, जय, पराजय, व्यवहार इन सभी विषयों को सम्मिलित किया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने जिस तरह महाभारत के युद्ध भूमि में धनुर्धर अर्जुन का मार्गदर्शन किया था। उसी तरह वर्तमान समय में गीता अनेकों लोगों का मार्गदर्शन कर रही है। गीता में यह भी बताया गया है की जीवन को बिना किसी अड़चनों के कैसे जिया जाता है। आइए गीता ज्ञान के इस भाग में जानते हैं कि श्रद्धा किसे कहते हैं और जीवन कैसे बनाया जा सकता है सरल।

भगवान श्री कृष्ण ने जीवन और धर्म के विषय में दिया ये ज्ञान

यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।

नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति सभी परिस्थितियों में अनासक्त अर्थात एक समान रहता है। ना सौभाग्य में प्रसन्न होता है और ना ही किसी विवाद या क्लेश में निराश होता है। उसे ही ज्ञान से पूर्ण व्यक्ति कहा जाता है।

इस श्लोक के माध्यम से यह बताया गया है कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपना आपा या अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए। जो व्यक्ति सुख एवं दुख में एक समान व्यवहार रखता है और अपने काम को पूर्ण करता है। फल की चिंता किए बिना कर्मों को पूरा करता है। वही सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति कहलाता है। अन्यथा जो खुशी में लोभी हो जाता है और दुख में क्रोध का साथ देता है। ऐसे व्यक्ति से न केवल मनुष्य बल्कि देवता भी क्रोधित हो जाते हैं।

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: ।

तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ।।

श्लोक का अर्थ है कि हे अर्जुन! जो भक्त दूसरे या अन्य देवताओं की पूजा श्रद्धा पूर्वक करता है, वह भी मेरा ही पूजन कर रहा है। लेकिन उसकी यह पूजा अवधि पूर्वक होती है।

इस श्लोक में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि व्यक्ति विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करता है। जिस तरह बुद्धि के लिए माता सरस्वती की पूजा, धन के लिए माता लक्ष्मी की और बल के लिए हनुमान जी की पूजा की जाती है उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी कार्य की पूर्ति के लिए अन्य देवी देवताओं की पूजा करता है। लेकिन वह श्रद्धा भाव अंत में मेरे लिए ही होता है। इस पूजा में व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से मेरा नाम स्मरण नहीं कर रहा है, बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देवताओं की पूजा कर रहा है।

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