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Bhanu Saptami 2024: भानु सप्‍तमी पर भगवान सूर्य को ऐसे करें प्रसन्न, सभी कार्यों में मिलेगी सफलता

भगवान सूर्य की पूजा बेहद शुभ मानी जाती है। सूर्य देव की पूजा करने से सभी ग्रह प्रसन्न होते हैं। आज यानी रविवार के दिन भानु सप्तमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन कठिन व्रत का पालन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही परिवार में खुशहाली आती है। इसके अलावा इस मौके पर सूर्य कवच का पाठ बहुत फलदायी माना गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 11 Aug 2024 08:53 AM (IST)
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Bhanu Saptami 2024: सूर्य कवच और सूर्य अष्टक स्तोत्र का पाठ -
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भानु सप्‍तमी ग्रहों के राजा सूर्य देव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि यह दिन सूर्य देवता को प्रसन्‍न करने के लिए बेहद खास है। ऐसी मान्यता है कि इस शुभ अवसर पर सूर्य देव की पूजा करने से सफलता, यश, सेहत, मान-सम्‍मान की प्राप्ति होती है। साथ ही पिता के साथ संबंध सुधरते हैं, क्योंकि वे पिता के कारक ग्रह हैं, जिनकी कुंडली में सूर्य की स्तिथि मजबूत नहीं है, उन्हें भानु सप्‍तमी का उपवास अवश्य करना चाहिए।

इसके साथ ही सूर्य कवच और सूर्य अष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार भानु सप्‍तमी आज 11 अगस्‍त 2024, दिन रविवार यानी आज मनाई जा रही है।

''सूर्य कवच''

॥श्रीसूर्यध्यानम्॥

रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं

भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः

माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥

श्री सूर्यप्रणामः

जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।

ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥

। याज्ञवल्क्य उवाच ।

श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् ॥॥

दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् ।

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥॥

शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः ।

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३ ॥

घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।

जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥॥

स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥॥

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥॥

सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः ।

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥॥

॥ इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं ॥

॥सूर्य अष्टक स्तोत्रम्॥

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।

दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।

तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।

समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।

यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।

प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।

यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।

यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।

सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।

तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।

सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥ ॥

॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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