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Magh Bihu 2023: माघ बिहू कब? जानिए महत्व के साथ कैसे मनाते हैं ये त्योहार

Bihu 2023 बिहू पर्व के दिन लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ कटी हुए फसल और नई फसल के लिए आभार प्रकट करने के लिए इकट्ठा होते हैं साथ ही पारंपरिक असमिया भोजन और मिठाई तैयार करते हैं। इसके साथ अग्नि जलाकर उसमें आहुति देते हैं।

By Shivani SinghEdited By: Shivani SinghUpdated: Thu, 12 Jan 2023 11:00 AM (IST)
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Magh Bihu 2023: माघ बिहू कब?, जानिए महत्व के साथ कैसे मनाते हैं ये त्योहार

नई दिल्ली, Bihu 2023: साल भर में सूर्य देव 12 बार राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं, तो वह संक्रांति कहलाता है। ऐसे ही जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी, उत्तरायण जैसे कई नामों से जानते हैं। वहीं असम में मकर संक्रांति को बिहू के रूप में मनाते हैं। माघ मास में पड़ने के कारण इसे माघ बिहू कहते हैं। इसके अलावा इसे भोगली बिहू, माघी के नाम से भी जानते हैं। यह पर्व भी अच्छी फसल के लिए भी मनाया जाता है। बिहू के दिन कृषि के देवता और पूर्वजों को भरपूर फसल और अच्छे जीवन के लिए धन्यवाद देने के लिए इस पर्व को मनाते हैं।  जानिए बिहू पर्व के बारे में सबकुछ।

कब है बिहू 2023?

आमतौर पर माघ बिहू का पर्व जनवरी में मनाया जाता है और कटाई  भी इस मास में समाप्त होती है। असम के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार इस साल बिहू पर्व 15 जनवरी 2023 को मनाया जा रहा है। माघ बिहू की तिथि चंद्र कैलेंडर के आधार पर हर साल अलग हो सकती है।

बिहू का महत्व

माना जाता है कि बिहू की उत्पत्ति विशु शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है शांति की तलाश करना। बिहू असम का एक पारंपरिक त्योहार है, जिसका कृषि और सामाजिक तौर पर अधिक महत्व है। कृषि की दृष्टि से कहा जाए, तो यह फसल के मौसम के अंत का प्रतीक है और कृषि के देवता और पूर्वजों को भरपूर फसल और अच्छे जीवन के लिए धन्यवाद देने का एक तरीका एक नायाब है।सामाजिक की बात करें तो बिहू दोस्ती और भाईचारे के संबंधों को मजबूत करने में मदद करता है। क्योंकि इस पर्व को हर समुदाय के लोग मिलजुल कर मनाते हैं।

कैसे मनाते हैं बिहू

बिहू पर्व की शुरुआत लोहड़ी के दिन से होती है। इसे उरुका कहा जाता है। इस दिन सभी लोग नदी में स्नान करते हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक स्थान में पुआल से अस्थाई झोपड़ी बनाते है, जिसे भेला घर कहते हैं। इस जगह पर सात्विक भोजन बनाया जाता है। इसके बाद भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

भेला घर के पास बांस और पुआल से एक और झोपड़ी बनाते हैं जिसे मेजी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सभी लोग स्नान आदि करने के बाद इस मेजी में आग लगाते हैं। इसके बाद आग के चारों ओर लोग एकत्र होकर कुछ चीजें अर्पित करते हैं। इसके साथ ही लोग नाचते और गाते हैं। अंत में भगवान से मंगल की कामना करते हैं। अगले दिन मेजी की राख को उर्वरक मानकर खेतों में छिड़काव कर देते हैं। 

Pic Credit- freepik

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।