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Buddha Purnima 2023: कल है बुद्ध पूर्णिमा, जानें, विश्व गुरु शाक्यमुनि गौतम से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

Buddha Purnima 2023 भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुम्बिनी नामक स्थान पर 563 ईसा पूर्व में हुआ था। इनके पिता जी का नाम शुद्धोधन था और माता जी का नाम माया देवी था। इनके पिता जी शाक्य गण के राजा थे।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 04 May 2023 01:32 PM (IST)
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Buddha Purnima 2023: कल है बुद्ध पूर्णिमा, जानें, विश्व गुरु शाक्यमुनि गौतम से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Buddha Purnima 2023: हिंदी पंचांग के अनुसार, 5 मई को बुद्ध पूर्णिमा है। यह पर्व हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। सनातन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन विशेष होता है। इस दिन देश भर में उत्सव जैसा माहौल रहता है। बौद्ध मठों और मंदिरों की साफ सफाई की जाती है। मंदिर और मठों को सजाया जाता है। इस अवसर पर विशेष पूजा और सत्संग का आयोजन किया जाता है। कुल मिलाकर कहें तो देश-दुनिया में बौद्ध पूर्णिमा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि वैशाख पूर्णिमा की तिथि को भगवान बुद्ध को सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस दिन भगवान विष्णु और बुद्ध की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए, विश्व गुरु और भगवान बुद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जानते हैं-

भगवान बुद्ध जीवनी

भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुम्बिनी नामक स्थान पर 563 ईसा पूर्व में हुआ था। इनके पिता जी का नाम शुद्धोधन था और माता जी का नाम माया देवी था। इनके पिता जी शाक्य गण के राजा थे। महज 7 दिन की आयु में भगवान बुद्ध की माता जी पंचतत्व में विलीन हो गई थी। उस समय इनका लालन-पालन मां की सगी बहन प्रजापति गौतमी ने किया।

ऐसा कहा जाता है कि मां के जाने के बाद ही भगवान बुद्ध के मन में अध्यात्म की रुचि बढ़ गई थी। समय के साथ उनकी आध्यत्मिकता में रुचि बढ़ती गई। बाल्यावस्था से सिद्धार्थ यानी भगवान बुद्ध ईश्वर की आराधना और उपासना करते थे।

एक दिन भगवान बुद्ध बाग में टहल रहे थे। उस समय उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति दिखा। वह वृद्ध व्यक्ति बेहद असहाय था। ठीक से चल नहीं पा रहा था। उसे देख भगवान बुद्ध व्यतीत हो उठें। इसके अगले दिन उन्हें एक रोगी व्यक्ति दिखा।

तीसरे दिन बाग में टहलते समय उनकी नजर अर्थी पर पड़ी। चार व्यक्ति शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहे थे। वहीं, शव के पीछे उनके रिश्तेदार रो रहे थे। वहीं, अंतिम दिन बाग में टहलते समय उन्हें संन्यासी दिखा, जिनके चेहरे पर विशेष ओज और तेज था। साथ ही संन्यासी के चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी।

यह सब देख भगवान, बुद्ध ईश्वर द्वारा रचित माया को समझ गए। इसके बाद महज 29 साल की उम्र में भगवान बुद्ध संन्यासी बन गए और ईश्वर और सत्य की खोज में निकल पड़ें। कालांतर में 6 वर्ष तक कठिन तपस्या के बाद भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। भगवान बुद्ध 483 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन पंचतत्व में विलीन हो गए। इस दिन को परिनिर्वाण दिवस कहा जाता है।

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