Chanakya Niti: पाना चाहते हैं मानसिक तनाव से निजात, तो याद रखें आचार्य चाणक्य की ये बात
इतिहासकारों की मानें तो तत्कालीन समय में विषकन्या के जरिए भी राजा की हत्या की जाती थी। उस समय में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की रक्षा की थी। अपनी रचना नीति शास्त्र में आचार्य चाणक्य ने भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ यानी परम पिता परमेशवर बताया है। उनका कहना है कि उनकी कृपा से ही व्यक्ति जीवन में सब कुछ प्राप्त करता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 03 Apr 2024 07:22 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chanakya Niti: मौर्य साम्राज्य के समकालीन आचार्य चाणक्य अपनी नीतिबल के लिए जाने जाते हैं। आचार्य चाणक्य ने नीतिबल के जरिए भारत की सीमा का व्यापक विस्तार किया। कई अवसर पर संकट में घिरे चन्द्रगुप्त मौर्य को चाणक्य ने अपनी सूझ-बूझ से बचाया था। इतिहासकारों की मानें तो तत्कालीन समय में विषकन्या के जरिए भी राजा की हत्या की जाती थी। उस समय में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की रक्षा की थी। अपनी रचना नीति शास्त्र में आचार्य चाणक्य ने भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ यानी परम पिता परमेशवर बताया है। उनका कहना है कि भगवान विष्णु की कृपा से ही व्यक्ति जीवन में सब कुछ प्राप्त करता है। हरि नाम सुमिरन से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त दुख, संकट, रोग, शोक, कष्ट, भय आदि दूर हो जाते हैं। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त मानसिक और शारीरिक कष्ट से निजात पाना चाहते हैं, तो आचार्य चाणक्य की ये बात जरूर याद रखें।
1. का चिन्ता मम जीवने यदि हरिर्विश्वम्भरो गीयते नो चेदर्भकजीवनाय जननीस्तन्यं कथं निर्ममे ।
इत्यालोच्य मुहुर्मुहुर्यदुपते लक्ष्मीपते केवलं त्वत्पादाम्बुजसेवनेन सततं कालो मया नीयते ॥आचार्य चाणक्य अपनी रचना नीति शास्त्र के दसवें अध्याय के 17वें श्लोक में कहते हैं कि काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, जिसके माथे पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का हाथ होता है। शास्त्रों को साक्षी मानकर आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भगवान विष्णु जगत के पालनहार हैं। उन्होंने ही ब्रह्मांड की रचना की है। अतः जीव, जंतु, पशु, पक्षी समेत मानव के अन्नदाता भगवान विष्णु हैं। उनके रहते मुझे चिंता करने की क्या ही आवश्यकता है ? इसका प्रमाण गर्भ में पल रहे बच्चे के जीवन से मिलता है।
आचार्य चाणक्य आगे कहते हैं- गर्भ में शिशु के आने के साथ मां अपने बच्चे को आहार देने योग्य हो जाती हैं। इसका अर्थ यह है कि उस नवजात शिशु के पालन-पोषण और भोजन का इंतजाम भगवान विष्णु कर देते हैं। अतः व्यक्ति को विशेष चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं अपना संपूर्ण जीवन भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूं। इस श्लोक के माध्यम से यह सीख मिलती है कि होता वही है, जो श्रीहरि चाहते हैं। इसके लिए किसी चीज के खोने या जीवन में विषम परिस्थिति पैदा होने पर घबराना नहीं चाहिए और न ही परेशान होना चाहिए।
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