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Chandra Grahan 2023: चंद्र ग्रहण के दौरान तुलसी से जुड़े इन नियमों का रखें ध्यान, वरना मिल सकते हैं बुरे परिणाम

Chandra Grahan 2023 साल का अंतिम चंद्र ग्रहण 28 अक्‍टूबर 2023 को लग रहा है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कई सारी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है क्योंकि इनका असर हमारे जीवन पर पड़ता है। कई लोग ऐसे हैं जो इस दौरान मां तुलसी की पूजा-अर्चना करते हैं जो पूरी तरह से वर्जित माना गया है। तो आइए जानते हैं चंद्रग्रहण के दौरान किन नियमों का ध्यान रखना चाहिए -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Fri, 20 Oct 2023 02:40 PM (IST)
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Chandra Grahan 2023

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Chandra Grahan 2023: साल का अंतिम चंद्र ग्रहण 28 अक्‍टूबर 2023 को शरद पूर्णिमा के दिन लग रहा है। यह ग्रहण (Chandra Grahan) आप भारत में देख पाएंगे। शास्त्रों अनुसार, इस दिन कई सारी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, क्योंकि इनका असर हमारे जीवन पर पड़ता है। चंद्र ग्रहण और सूतक काल किसी भी मांगलिक कार्यों के लिए शुभ नहीं माने गए हैं। वहीं कई लोग ऐसे हैं, जो इस दौरान मां तुलसी की पूजा-अर्चना करते हैं, जो पूरी तरह से वर्जित माना गया है। तो आइए जानते हैं चंद्रग्रहण के दौरान किन नियमों का ध्यान रखना चाहिए -

तुलसी से जुड़े नियम -

  • चंद्र ग्रहण के दौरान तुलसी के पौधे को न छुएं।
  • तुलसी की पूजा न करें।
  • तुलसी पर जल न चढ़ाएं।
  • तुलसी के सामने दीया न जलाएं।
  • तुलसी की पत्तियों को न तोड़े।

ऐसी मान्यता है कि चंद्र ग्रहण की अवधि के दौरान खाने की सभी चीजें बुरे प्रभाव में आ जाती हैं। इस वजह से लोग खाने की चीजों में तुलसी पत्र डाल देते हैं, जिससे वो पूर्णता शुद्ध रहें। साथ ही उनसे हानिकारक किरणों का प्रभाव पूरी तरह से खत्म हो जाए। लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि चंद्र ग्रहण के दौरान तुलसी पत्र को न तोड़े नाही छुएं। क्योंकि इससे मां लक्ष्‍मी नाराज होती हैं। हालांकि ग्रहण से पूर्व तुलसी से जुड़े नियम पूरे कर लें।

तुलसी स्तुति -

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।

नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥॥

मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि ।

आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम् ॥॥

यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये सर्वदेवताः ।

यदग्रे सर्व वेदाश्च तुलसि त्वां नमाम्यहम् ॥॥

अमृतां सर्वकल्याणीं शोकसन्तापनाशिनीम् ।

आधिव्याधिहरीं नॄणां तुलसि त्वां नम्राम्यहम् ॥॥

देवैस्त्चं निर्मिता पूर्वं अर्चितासि मुनीश्वरैः ।

नमो नमस्ते तुलसि पापं हर हरिप्रिये ॥॥

सौभाग्यं सन्ततिं देवि धनं धान्यं च सर्वदा ।

आरोग्यं शोकशमनं कुरु मे माधवप्रिये ॥॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भयोऽपि सर्वदा ।

कीर्तिताऽपि स्मृता वाऽपि पवित्रयति मानवम् ॥॥

या दृष्टा निखिलाघसङ्घशमनी स्पृष्टा वपुःपावनी

रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी ।

प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता

न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ॥॥

॥ इति श्री तुलसीस्तुतिः ॥

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देंश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।