Chaturmas 2024: आखिर क्यों जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने करते हैं शयन?
धार्मिक मत है कि एकादशी व्रत करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। कालांतर में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता ने देवशयनी एकादशी व्रत कर प्रजा की रक्षा की थी। अतः साधक देवशयनी एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-भक्ति करते हैं। इस दिन से चातुर्मास भी शुरू होता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 23 May 2024 08:45 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaturmas 2024: हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि एकादशी व्रत करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। कालांतर में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता ने देवशयनी एकादशी व्रत कर प्रजा की रक्षा की थी। अतः साधक देवशयनी एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-भक्ति करते हैं। इस दिन से चातुर्मास भी शुरू होता है। सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ चार महीने होता है। इन चार महीने में भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। इसके लिए आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में लगातार चार महीने शयन करते हैं ? आइए जानते हैं-
चातुर्मास
हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं। इस दिन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसके पश्चात लगातार चार महीने तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को योगनिद्रा से जागृत होते हैं। इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रिदेव क्रमशः चार महीने तक सुतल में शयन या विश्राम करते हैं।कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। स्वर्ग से बेदखल होने के बाद इंद्र देव, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे। उन्हें आपबीती सुनाई। जगत के पालनहार भगवान विष्णु को पूर्व से ही स्थिति का आभास था। उस समय उन्होंने इंद्र देव को आश्वासन दिया कि निकट भविष्य में आप पुनः स्वर्ग लोक के नरेश बनेंगे।ऐसा कहा जाता है कि राजा बलि असुर कुल के होने के बावजूद प्रतापी और दयालु थे। राजा बलि, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे। कठिन तपस्या और भक्ति कर राजा बलि ने तीनों लोकों को जीत लिया। इंद्र देव को स्वर्ग लोक लौटाने के लिए भगवान विष्णु ने तत्कालीन समय में वैदिक ऋषि प्रजापति कश्यप के घर पर देवी अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। देवी अदिति ने भगवान विष्णु का पालन-पोषण किया।
एक दिन भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास पहुंचे और रहने हेतु तीन पग भूमि देने की बात कही। दैत्यों के गुरु शुक्र देव वामन रूपी भगवान विष्णु को पहचान गए। उस समय शुक्र देव ने राजा बलि को छले जाने की चेतावनी दी। इसके बावजूद राजा बलि ने वामन ब्राह्मण को तीन पग देने का वचन दिया। इसके बाद वामन ब्राह्मण ने एक पग में भूलोक नाप लिया। दूसरे पग में देवलोक नाप लिया। तीसरे पग हेतु भूमि शेष नहीं रही।
तब राजा बलि ने अपना मस्तिष्क वामन ब्राह्मण के पग के नीचे रखा। भगवान विष्णु के चरण का स्पर्श पाकर राजा बलि सुतल पहुंच गए। कहते हैं कि भगवान विष्णु के चरण स्पर्श पाकर राजा बलि को अमरत्व प्राप्त हुआ। राजा बलि की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि से वर मांगने को कहा। उस समय राजा बलि ने भगवान विष्णु को हमेशा साथ रहने का अनुरोध किया।यह देख धन की देवी मां लक्ष्मी सकते में आ गईं। तब मां लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई बनाकर भगवान विष्णु को अपने वर से मुक्त करने की याचना की। राजा बलि मान गए। हालांकि, भगवान विष्णु वचन दे चुके थे। अतः चार महीने के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु के वचन को पूरा करने हेतु भगवान शिव एवं ब्रह्मा जी भी सुतल में चार-चार महीने तक रहते हैं।
यह भी पढ़ें: आखिर किस वजह से कौंच गंधर्व को द्वापर युग में बनना पड़ा भगवान गणेश की सवारी? अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।