Chhath Puja 2023: जानें, लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की पौराणिक कथा एवं धार्मिक महत्व
Chhath Puja 2023 Vrat Katha धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से तेजस्वी ओजस्वी और मेधावी पुत्र की प्राप्ति होती है। वर्तमान समय में यह पर्व देश दुनिया में धूमधाम से मनाया जाता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 07 Sep 2023 06:40 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Chhath Puja 2023: हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। तदनुसार, इस वर्ष 19 और 20 सितंबर को छठ पूजा है। चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय के दिन से होती है। इसके अगले दिन खरना मनाया जाता है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके अगले दिन उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी पुत्र की प्राप्ति होती है। वर्तमान समय में यह पर्व देश दुनिया में धूमधाम से मनाया जाता है। आइए, लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व जानते हैं-
छठ पूजा की पौराणिक कथा
वर्तमान समय में छठ पूजा की कई पौराणिक कथाएं प्रचलन में हैं। हालांकि, शास्त्रों की मानें तो त्रेता काल से छठ पूजा मनाई जाती है। इसका उल्लेख शास्त्रों में निहित है। कथा के अनुसार, त्रेता युग में मिथिला नरेश जनक की ख्याति दुनियाभर में फैल गई थी। राजा कर्म से क्षत्रिय थे, किन्तु धर्म से ब्राह्मण थे। आसान शब्दों में कहें तो राजा जनक शास्त्रों के महान ज्ञाता थे। उनकी प्रसिद्धि से कुछ पंडित प्रसन्न नहीं हुए। पंडितों का मानना था कि कोई नृप कैसे महान पंडित हो सकता है ? हालांकि, धर्म पंडित यह भूल गए थे कि जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा स्वयं सीता रूप में राजा जनक की पुत्री बनीं।
इसके बावजूद उन्होंने राजा जनक को शास्त्रार्थ की चुनौती दी। कहते हैं कि जब ये पंडित मिथिला गए, तो इन्हें राजा जनक से मिलने का अवसर मिला। उस समय इनके पास शास्त्रार्थ हेतु राजा जनक के लिए कोई सवाल नहीं था। धर्म पंडितों ने राजा जनक से शिष्टाचार मुलाकात की। राजा जनक के शास्त्र ज्ञान से धर्म पंडित बहुत प्रभावित हुए। तत्क्षण धर्म पंडितों ने राजा जनक को अपना गुरु मान लिया और मिथिला में ही बस गए। ऐसा कहा जाता है कि धर्म पंडितों ने मिथिला में सूर्य उपासना प्रथा की शुरुआत की। ये सभी सूर्य उपासक थे। अतः त्रेता काल से छठ पूजा मनाई जाती है।
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दूसरी कथा
प्राचीन समय में राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी। इससे राजा और रानी दोनों अप्रसन्न थे। एक दिन राजा प्रियव्रत अपनी व्यथा लेकर महर्षि कश्यप के पास पहुंचे। महर्षि कश्यप ने उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी। कालांतर में राजा प्रियव्रत की पत्नी गर्भवती हुई। हालांकि, नौ माह के पश्चात मृत पुत्र पैदा हुआ। यह देख प्रियव्रत की पत्नी अत्यंत दुखी हो गई। विधि के विधान को मान राजा प्रियव्रत संतान के साथ स्वयं भी पंचतत्व में विलीन होने की सोचने लगे।उसी समय एक देवी प्रकट होकर बोली- मैं मानस पुत्री देवसेना हूं। आप मेरी पूजा करो और अन्य को भी छठ पूजा करने की सलाह दें। छठ पूजा करने से आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा प्रियव्रत ने मानस पुत्री देवसेना का आज्ञा का पालन कर विधि विधान से छठ पूजा की। इस व्रत के पुण्य प्रताप से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उस समय से छठ पूजा मनाई जाती है। महाभारत काल में द्रौपदी ने भी छठ उपासना की थी।
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