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Chhath Puja 2023: आज सूर्य देव की पूजा करते समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी दुख और संताप

धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा के पुण्य प्रताप से व्रती के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। नवविवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत रखती हैं। अगर आप भी सूर्य की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो आज सूर्य देव की पूजा करते समय इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी दुख और संताप दूर हो जाते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 17 Nov 2023 10:15 AM (IST)
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Chhath Puja 2023: आज सूर्य देव की पूजा करते समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chhath Puja 2023: चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत आज से हो रही है। आज पहले दिन नहाय खाय मनाया जा रहा है। इस दिन व्रती पवित्र नदी या सरोवर में स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा करती हैं। इसके पश्चात, भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में चने की दाल, चावल और लौकी की सब्जी खाने का विधान है। अतः व्रती ये चीजें ही ग्रहण करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा के पुण्य प्रताप से व्रती के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। नवविवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत रखती हैं। अगर आप भी सूर्य की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज सूर्य देव की पूजा करते समय इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी दुख और संताप दूर हो जाते हैं।

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सूर्य कवच

रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं

भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः

माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥

श्री सूर्यप्रणामः

जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।

ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥

श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम्॥

दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम्।

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥

शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः।

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥

घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।

जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥

स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः।

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥

सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः।

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥

सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम्

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।

दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।

तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।

समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।

यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।

प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।

यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।

यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।

सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।

यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।

तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।

सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥

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