Mata Chinnamasta Katha: रहस्यों से भरी है मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा
माता सती को भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में जाना जाता है। साथ ही पौराणिक ग्रंथों में माता सती द्वारा लिए गए दस महाविद्याओं का भी वर्णन मिलता है जिनकी पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्र के दौरान की जाती है। ऐसे में आज हम आपको दस महाविद्याओं में से एक देवी छिन्नमस्ता की कथा बताने जा रहे हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देवी छिन्नमस्ता, दस महाविद्याओं में से छठी महाविद्या हैं। अन्य महाविद्याओं में मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां काली, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला शामिल हैं। इनका स्वरूप काफी भयावह और विकराल माना गया है। इनकी उत्पति को लेकर एक बड़ी ही विचित्र कथा मिलती है। तो चलिए जानते हैं वह कथा।
कैसा है इनका स्वरूप
देवी छिन्नमस्ता के स्वरूप की बात करें, तो उन्होंने अपने बाएं हाथ में स्वयं का ही कटा हुआ सिर लिया हुआ है। उनकी कटी हुए गर्दन से रक्त की तीन धाराएं निकल रही है। जिसमें से एक स्वयं उसके मुख में जा रही हैं और दो धाराएं उनकी दो परिचारकों के मुख में जा रही हैं। अपने दाहिने हाथ में खड्ग धारण किए हुए हैं।
छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षसों और दैत्यों ने हाहाकार मचाया हुआ था, जिससे मानव एवं देवता आतंकित थे। तब मानव ने मां शक्ति को याद किया। तब पार्वती का 'छिन्नमस्ता' के रूप में अवतरण हुआ। देवी छिन्नमस्ता ने खड़ग से राक्षसों-दैत्यों का संहार किया। इस दौरान माता को किसी भी चीज का ध्यान नहीं रहा और व केवल पापियों का नाश करने लगीं। जिससे काफी रक्तपात होने लगा। मां अपने प्रचण्ड रूप में आ गई थीं, जिससे पृथ्वी पर हाहाकार मचने लगा। तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव की शरण ली और उनसे माता के इस प्रचण्ड रूप को रोकने की प्रार्थना करने लगे।
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भगवान शिव ने दिया सुझाव
देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव मां छिन्नमस्ता के पास पहुंचे। शिव जी को देखकर माता ने उनसे कहा कि "हे नाथ! मुझे भूख सता रही है। मैं अपनी भूख कैसे मिटाऊं?" भगवान शिव ने कहा कि आप पूरे ब्रह्माण्ड की देवी हैं। आप तो खुद एक शक्ति हैं। तब भगवान शिव के कहने मां छिन्नमस्ता तुरंत अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर सिर को बाएं हाथ में ले लिया। गर्दन से खून की तीन धाराएं निकलने लगी जिसमें से एक धारा का पान माता ने स्वयं किया और जो बाएं-दाएं 'डाकिनी'-'शाकिनी' थीं, दो धाराएं उन दोनों के मुख में चली गईं। इससे मां तृप्त हुईं।
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