अपना ही पुत्र बना था भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण, पढ़ें यह कथा
आज हम आपको बता रहे हैं भगवान श्रीकृष्ण के मृत्यु से जुड़ी उस घटना के बारे में जिस कारण से उनके पूरे कुल का नाश हो गया।
मौसल पर्व में है श्रीकृष्ण की मृत्यु की कहानी
महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत के मौसल पर्व में भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु और उनकी द्वारका नगरी के समुद्र में समा जाने का विवरण दिया गया है। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में से जाम्बवती के पुत्र का नाम सांब था। देवर्षि नारद, दुर्वशा, विश्वामित्र जैसे कई ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारका नगरी पहुंचे थे। सांब ने शरारत वश एक स्त्री का वेश धारण कर लिया और उन ऋषि-मुनियों से पूछा कि उसके गर्भ में बेटा है या बेटी?
सांब को मिले श्राप से श्रीकृष्ण के कुल का हुआ अंत
एक ऋषि उसकी शरारत को समझ गए और गुस्से में सांब को श्राप दिया कि वह एक लोहे की तीर को जन्म देगा, जिसके कारण उसके कुल का सर्वनाश हो जाएगा। श्राप से मुक्ति के लिए उसने प्रभास नदी में तांबे के तीर का चूर्ण बनाकर प्रवाहित कर दिया। उस चूर्ण को एक मछली ने निगल लिया। कुछ समय पश्चात द्वारका में नशीली चीजों का सेवन बढ़ गया। छल-कपट, विश्वासघात जैसी चीजें वहां के लोगों में आ गई थीं। लोगों के गलत आचरण और कार्यों से पाप बढ़ गया था।
पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रजा से प्रभास नदी के किनारे व्रत, स्नान आदि का सुझाव दिया। उनकी सारी प्रजा वहां चली गई, लेकिन वहां पर आपस में ही उनकी लड़ाई हो गई, जिसमें अंत में श्रीकृष्ण और उनकी प्रजा के कुछ लोग बच गए। श्रीकृष्ण के आदेश पर बाकी प्रजा हस्तिनापुर चली गई।
इस बीच भगवान श्रीकृष्ण वन में ध्यान मुद्रा में थे। इसी बीच वहां एक बहेलिया आया, उसने श्रीकृष्ण को हिरण समझ कर तीर चला दिया, जो उनके पैरे के तालू में जा लगा। भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मानव शरीर त्याग दिया और वैकुंठ चले गए। जिस मछली ने तांबे के तीर का चूर्ण निगला था, उसके पेट में एक छोटा सा धातु बन गया था। उस मछली का शिकार बहेलिया ने किया और मछली के पेट से वह धातु मिला था, जिससे उसने तीर बनाया। उस तीर से ही श्रीकृष्ण के इस अवतार का अंत हो जाता है। उधर द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।