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जीवन दर्शन: सोच से बनती है नियति

जो दिख रहा है हमें वह नहीं सोचना है। हमें वह सोचना है जो होना चाहिए या जो हम देखना चाहते हैं। इसे आप जीवन की किसी भी स्थिति-परिस्थिति में उपयोग कर देख सकते हैं। आप खुद को अपने परिवार को अपने देश को और पूरे विश्व को कैसा देखना चाहते हैं? यह बात सोचनी है। तभी जीवन और स्थितियों में बदलाव आएगा।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sun, 28 Jan 2024 09:46 AM (IST)
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विचार से हमारी सोच बनती है और सोच से हमारी नियति
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता) | कहते हैं, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। समस्याएं ही हमें समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं। हर एक के जीवन में कोई न कोई समस्या होती है। अगर हम यही सोचते रहेंगे कि समस्या इतनी बड़ी है, यह कभी ठीक होगी भी कि नहीं। हम जितना इस प्रकार सोचते जाएंगे, समस्या उतनी ही बढ़ती जाएगी। मैं बीमार हूं, मेरा रक्तचाप ज्यादा है, मेरा मधुमेह स्तर ठीक नहीं है। यदि ऐसा हम सोचते और बोलते जाते हैं तो वह स्थिति ठीक नहीं होगी।

हो सकता है, वह समस्या थोड़ी-सी और बढ़ जाए, क्योंकि संकल्प से सिद्धि होती है। अगर आपके निजी संबंधों में थोड़ी-सी समस्या है तो आप अक्सर नकारात्मक सोचना शुरू कर देते हैं। पता नहीं इनको मुझसे क्या समस्या है। मैं कितना भी कोशिश करूं, यह संबंध तो ठीक होता ही नहीं है।

विचार से हमारी सोच बनती है और सोच से हमारी नियति

पता नहीं, आगे ठीक होगा भी या नहीं। ये सब हमारे विचार हैं और हम कहते हैं यह समस्या है। हम ऐसा सोच-सोचकर संबंधों में और टकराव पैदा कर रहे हैं, जबकि होना तो यह चाहिए कि जो दिख रहा है, हमें वह नहीं सोचना है। हमें वह सोचना है, जो होना चाहिए या जो हम देखना चाहते हैं।

इसे आप जीवन की किसी भी स्थिति-परिस्थिति में उपयोग कर देख सकते हैं। आप खुद को कैसा देखना चाहते हैं? आप अपने परिवार को कैसा देखना चाहते हैं? आप अपने देश को और पूरे विश्व को कैसा देखना चाहते हैं? यह बात सोचनी है। क्योंकि, हमारे विचार से हमारी सोच बनती है और सोच से हमारी नियति बनती है।

हमारे पास शक्ति है

सारा विश्व जिस प्रकार सोचेगा, उस हिसाब से उसकी नियति बदलेगी। इस समय हमारे पास शक्ति है, हम अपने सोच को सही मार्ग पर लाकर अपनी नियति, अपने परिवार की नियति तथा अनेक लोगों की नियति पर प्रभाव डाल सकते हैं। यह सच है, हम सब अपने को सदा स्वस्थ देखना चाहते हैं।

लेकिन हम सोच क्या रहे हैं? हम यही तो सोच रहे हैं कि कहीं मुझे यह रोग न हो जाए। हम सोच रहे हैं, मैं यह काम करूं तो कहीं मुझे यह न हो जाए। मैं इस चीज को हाथ लगाऊं तो मुझे यह न हो जाए। यह ठीक है, किसी भी संक्रमित वस्तु को हाथ नहीं लगाना है। उससे दूर रहना चाहिए। ये तो स्वास्थ्य के नियम हैं, लेकिन हाथ नहीं लगाते समय यह नहीं सोचना है कि मैं संक्रमित न हो जाऊं।

अपनी शब्दावली की जांच करें

जो हम कर रहे हैं और जो सोच रहे हैं, ये दोनों अलग-अलग चीजें है, जब आप बाहर से आते हैं तो संक्रमण और बीमारियों से बचने के लिए हाथ धोते हैं। लेकिन हाथ धोते समय यह नहीं सोचना है कि कहीं मैं बीमार न हो जाऊं, कहीं मुझे संक्रमण न हो जाए। हमें यह सोचना है कि मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं और अपने हाथ इन्हें स्वच्छ रखने के लिए धो रहा हूं। हमें कैसे सोचना चाहिए? यह कोई नहीं बताएगा।

इसे तो हमें स्वयं अपने लिए तय करना होगा। सबसे पहले तो हम अपनी शब्दावली की जांच करें। वह शब्दावली सकारात्मक है या नकारात्मक, जब अपने विचारों को बदलना आसान न लगे, तो अपने शब्दों को बदल देना चाहिए। यह सरल होता है। अपने अंदर बदलाव लाने के लिए पहले हमें बाहर बदलाव करना होगा। शब्दों द्वारा स्वयं को याद दिलाना, एक-दूसरे को याद दिलाना आसान होता है।

सकारात्मक और मीठे बोल

कई बार हम अपने सकारात्मक और मीठे बोल से दूसरों के विचार और व्यवहार को बदल देते हैं। मधुर शब्दों एवं हंसमुख चेहरे से आपसी संबंधों में भी सुधार व मधुरता आती है। आपसी निजी संबंधों तथा समाज और प्रकृति के साथ संबंधों को सही करने के लिए या उनमें सुधार लाने हेतु सही शब्दों को सही ढंग से बोलना तथा उपयोग करना चाहिए। यह तब होगा, जब हमारे सोच, भावना, दृष्टि, वृत्ति, विचार व दृष्टिकोण आत्मिक होंगे।

आत्मिक दृष्टि से स्नेह, सहयोग व भाईचारे के भाव उत्पन्न होते हैं और आत्मीय वृत्ति से वातावरण व पर्यावरण शुद्ध, स्वच्छ और प्रसन्नचित्त बन जाते हैं। मानव जीवन और समाज समृद्ध व सुखमय होते हैं। प्रकृति व सृष्टि हरी-भरी हो जाती है।

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