Dev Diwali History: आज कार्तिक पूर्णिमा को क्यों मनाते हैं देव दीपावली? पढ़ें ये दो पौराणिक कथाएं
Dev Diwali History कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव की नगरी काशी में देव दीपावली मनाई जाती है। इस बार देव दीपावली 30 नवंबर को है। देव दीपावली के संदर्भ में दो पौराणिक कथाएं मिलती हैं। इसमें एक कथा महर्षि विश्वामित्र तथा दूसरी भगवान शिव से जुड़ी है।
By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Mon, 30 Nov 2020 09:14 AM (IST)
Dev Diwali History: कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव की नगरी काशी यानी बनारस में देव दीपावली मनाई जाती है। इस बार देव दीपावली 30 नवंबर को है। देव दीपावली के दिन भगवान शिव और गंगा माता की पूजा की जाती है। संध्या के समय में गंगा आरती होती है। देव दीपावली के संदर्भ में दो पौराणिक कथाएं मिलती हैं। इसमें एक कथा महर्षि विश्वामित्र तथा दूसरी भगवान शिव से जुड़ी है। आइए पढ़ते हैं उन कथाओं को।
देव दीपावली की पहली कथायह कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी। उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया। यह देखकर देवता अचंभित रह गए। विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी। इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा। उनको यह हार स्वीकार नहीं थी।
तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी। इससे देवता भयभीत हो गए। उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी। अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए। उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी। इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया।
देव दीपावली की दूसरी कथा
देव दीपावली की दूसरी कथा भगवान शिव से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय तीनों ही लोक त्रिपुर नाम के राक्षस के अत्याचारों से भयभीत और दुखी था। उससे रक्षा के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। तब भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरासुर का वध कर दिया और तीनों लोकों को उसके भय से मुक्त किया। उस दिन से ही देवता हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव के विजय पर्व के रूप में मनाने लगे। उस दिन सभी देव दीपक जलाते हैं। इस दीपोत्सव को देव दीपावली कहा गया।