देवोत्थान एकादशी पर शुभ होता है तुलसी विवाह व पूजन, जानें इसका महत्व और कथा
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी के दिन घरों व मंदिरों में तुलसी जी का विवाह रचाया जाता है। आइए जानें इस दिन तुलसी विवाह का महत्व व इसके जुड़ी कथा...
By Shweta MishraEdited By: Updated: Tue, 31 Oct 2017 08:28 AM (IST)
ऐसे करें तुसली विवाह
दीपावली के 11 दिन बाद देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देव उठनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु जी चार माह बाद नींद से जागते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी जी और भगवान शालिग्राम का धूमधाम से विवाह किया जाता है। विवाह के समय तुलसी के पौधे को कन्या स्वरूप मानकर लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, बिछिया, वस्त्र, महवर जैसी चीजों से सोलह श्रृंगार किया जाता है। वहीं भगवान शालिग्राम को भी जल से स्नान आदि कराकर नए वस्त्र आदि धारण कराए जाते हैं। इसके बाद पुरोहित मंत्रोचार के द्वारा विवाह शुरू करते हैं। तुलसी विवाह के दौरान बारात व कन्यादान जैसी रस्में भी विधिविधान से निभाई जाती हैं। विवाह संपन्न होने के बाद शंख-घंटा घड़ियाल आदि बजाए जाते हैं।
दीपावली के 11 दिन बाद देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देव उठनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु जी चार माह बाद नींद से जागते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी जी और भगवान शालिग्राम का धूमधाम से विवाह किया जाता है। विवाह के समय तुलसी के पौधे को कन्या स्वरूप मानकर लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, बिछिया, वस्त्र, महवर जैसी चीजों से सोलह श्रृंगार किया जाता है। वहीं भगवान शालिग्राम को भी जल से स्नान आदि कराकर नए वस्त्र आदि धारण कराए जाते हैं। इसके बाद पुरोहित मंत्रोचार के द्वारा विवाह शुरू करते हैं। तुलसी विवाह के दौरान बारात व कन्यादान जैसी रस्में भी विधिविधान से निभाई जाती हैं। विवाह संपन्न होने के बाद शंख-घंटा घड़ियाल आदि बजाए जाते हैं।
कन्यादान का फल तुलसी विवाह के समय भगवान विष्णु को प्रतिमा समीप में रखना अनिवार्य है। इस दिन विवाह करने का उद्देश्य यह है कि इसके माध्यम से सीधे विष्णु जी का अह्ववाहन किया जाता है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी जी अति प्रिय हैं। इनका एक नाम वृंदा भी है। तुलसी जी के माध्यम से विष्णु जी तक हर बात आसानी से पहुंचाई जा सकती है। वहीं भगवान शालिग्राम और तुलसी जी के विवाह को कन्यादान से भी जोड़कर देखा जाता है। हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान माना जाता है। हर इंसान को अपने जीवन में पुण्य की प्राप्ति के लिए कन्यादान करना चाहिए। ऐसे में जिन लोगों को कन्या नहीं होती है वो लोग भी इस दिन तुलसी जी का विवाह करके इस पुण्य को पा सकते हैं।
वृंदा से बनी तुलसी
प्राचीन काल में शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी नाम वृंदा था। वृंदा के पतिव्रता होने से शंखचूड़ का पराक्रम और तेज होता जा रहा था। देवों व मानव पर उसका अत्याचार बढ़ता जा रहा था और उसने सभी को युद्धों में जीत लिया था। ऐसे में एक बार सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे शंखचूड़ के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की विनती की। इस दौरान देवों ने विष्णु जी से कहा अगर शंखचूड़ की पत्नी नाम वृंदा का सतीत्व भंग हो जाए तो शंखचूड़ का पराक्रम कम हो जाएगा। उसे हराया भी जा सकेगा। ऐसे में एक ओर विष्णु जी शंखचूड़ बनकर वृंदा के पास गए और वहीं दूसरी ओर देवों ने शंखचूड़ को युद्ध के लिए ललकार दिया। वृंदा विष्णु जी को शंखचूड़ समझकर उनके समीप गई तो उसका सतीत्व नष्ट हो गया। इसके बाद युद्ध में शंखचूड़ का पराक्रमी तेज नष्ट हो गया और वह मारा गया। इस बात का ज्ञान होने पर वृंदा को काफी क्रोध आया और उन्होंने श्रीहरि को श्राप दिया कि जैसे आज वह उनके छल से पति वियोग का दर्द झेल रही है ऐसे एक दिन वह भी मृत्यु लोक में जन्म लेकर पत्नी का छलपूर्वक हरण होने पर पत्नी वियोग का दर्द झेलोगे। इसके बाद वृंदा सती हो गई। जिस जगह वह सती हुईं थी तो वहां पर तुलसी का पौधा हुआ। जिसे वृंदा नाम मिला।
प्राप्त होगा परमधामवहीं इसको लेकर कुछ जगहों पर यह भी वर्णन किया गया है कि वृंदा ने श्रीहरि को पत्थर बन जाने का शाप दिया था। वहीं इसके विपरीत श्री हरि ने भी वृंदा को वरदान दिया कि, 'यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल होगा कि तुम तुलसी के रूप में हमेशा मेरे साथ ही रहोगी। तुलसी के बगैर हमेशा विष्णु पूजा अधूरी होगी। इतना ही नहीं जो भी मनुष्य कार्तिक मास की देव उठनी एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसे परमधाम की प्राप्ति होगी।