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Dhanu Sankranti 2023: धनु संक्रांति तिथि पर करें इस स्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगा मां गंगा का आशीर्वाद

धार्मिक मत है कि संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करने से व्यक्ति द्वारा जन्म जन्मांतर में किए गए सारे पाप धूल जाते हैं। साथ ही मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य उपासना करने से साधक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। अगर आप भी मां गंगा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो धनु संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 15 Dec 2023 08:00 AM (IST)
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Dhanu Sankranti 2023: धनु संक्रांति तिथि पर करें इस स्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगा मां गंगा का आशीर्वाद

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Dhanu Sankranti 2023: हर महीने सूर्य के राशि परिवर्तन तिथि पर संक्रांति मनाई जाती है। इस प्रकार, मार्गशीर्ष माह में 16 दिसंबर को धनु संक्रांति है। इस दिन सूर्य देव वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सनातन धर्म में संक्रांति तिथि पर स्नान-ध्यान, पूजा, जप-तप और दान करने का विधान है। धार्मिक मत है कि संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करने से व्यक्ति द्वारा जन्म जन्मांतर में किए गए सारे पाप धूल जाते हैं। साथ ही मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य उपासना करने से साधक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। अगर आप भी मां गंगा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो धनु संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करें। अगर सुविधा नहीं है, तो गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके पश्चात, पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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गंगा स्तोत्र

देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरल तरंगे।

शंकर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥

भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।

नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।

दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।

मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।

भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।

पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।

नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥

पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।

इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।

त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥

अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।

तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।

अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।

गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥

येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।

मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।

शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः त्व ॥

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