Diwali 2023: दिवाली के विशेष अवसर पर जानिए क्यों धन की देवी को कहा जाता है अष्टलक्ष्मी
Maa Ashtalakshmi माना जाता है कि जिस साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है उसे जीवन में कभी भी आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। क्योंकि हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन-समृद्धि की देवी माना गया है। पर क्या आप जानते हैं कि मां लक्ष्मी को क्यों कहा जाता है। अगर नहीं तो आइए दिवाली के इस शुभ अवसर पर जानते हैं मां अष्टलक्ष्मी का महत्व।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sun, 12 Nov 2023 10:58 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म। Diwali 2023 Puja: हर व्यक्ति चाहता है कि उसपर सदैव मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, ताकि उसे कभी आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े। मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी और आदिशक्ति के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि जो साधक श्रद्धाभाव से मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करता है, उसे धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अष्टलक्ष्मी स्वरूप का महत्व (Ashtalakshmi Significance)
शास्त्रों में माना गया है कि देवी लक्ष्मी एक नहीं बल्कि 8 रूप हैं और ये अष्टलक्ष्मी अपने नाम के अनुसार ही साधक को शुभ फल प्रदान करती हैं। ऐसे में साधक को अपनी मनोकामना के अनुसार ही देवी लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति शीघ्र होती है।
जानिये क्यों कहा जाता है माता लक्ष्मी को अष्टलक्ष्मी, सुनिए Podcast
मां अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूप (Ashtalakshmi)
- पहला स्वरूप - मां लक्ष्मी का पहला आदिलक्ष्मी या महालक्ष्मी को माना गया है। लोक-परलोक में सुख-संपदा की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी के इस रूप का वर्णन श्रीमद्देवीभागवत पुराण में मिलता है। जिसके अनुसार महालक्ष्मी के द्वारा ही सृष्टि के त्रिदेवों को प्रकट किया गया था। इसी के साथ सृष्टि के निर्माण की भी प्रक्रिया शुरू हुई। महालक्ष्मी से महाकाली और महासरस्वती का अवतरण हुआ। माना जाता है कि मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप यानी देवी आदिशक्ति जीव-जंतुओं को प्राण प्रदान करने का काम करती हैं।
- दूसरा स्वरूप - मां लक्ष्मी का दूसरा स्वरूप धनलक्ष्मी हैं। जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है, धनलक्ष्मी की आराधना धन की प्राप्ति के लिए की जाती है। साथ ही इनकी पूजा करने से व्यक्ति को कर्ज से भी मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए धनलक्ष्मी का रूप धारण किया था। देवी धनलक्ष्मी के स्वरूप की बात करें तो धनलक्ष्मी के एक हाथ में धन से भरा एक कलश और एक हाथ में कमल फूल हैं।
- तीसरा स्वरूप - धान्यलक्ष्मी, मां लक्ष्मी का तीसरा स्वरूप हैं, जिसका अर्थ अन्न संपदा। ऐसे में यदि मां लक्ष्मी के इस रूप की पूजा-अर्चना हमेशा अन्न भंडार भरे रहने की कामना के साथ की जाती है। धान्यलक्ष्मी को ही अन्नपूर्णा का स्वरूप माना जाता है। साथ ही इन्हें कृषि और फसल की देवी माना गया है। कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग मां लक्ष्मी के धान्यलक्ष्मी स्वरूप की पूजा करते हैं।
- चौथा स्वरूप - मां लक्ष्मी का चौथा स्वरूप गजलक्ष्मी हैं। गजलक्ष्मी कमल फूल के ऊपर विराजमान होती हैं और उनके दोनों ओर गज होते हैं। इसलिए इन्हें गजलक्ष्मी कहा जाता है। दोनों ओर के हाथी अपनी सूंड में जल लेकर मां गजलक्ष्मी का अभिषेक करते हैं। मान्यताओं के अनुसार गजलक्ष्मी पशुधन दात्री हैं। इन्होंने ही इंद्र देव को समुद्र की गहराई में खोए हुए धन को वापस पाने में सहायता की थी।
- पांचवां स्वरूप - संतान लक्ष्मी, मां लक्ष्मी का पांचवां स्वरूप मानी गई हैं। जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है, संतान लक्ष्मी की आराधना से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान लक्ष्मी ने अपने इस स्वरूप में एक बच्चे को गोद में लिया हुआ है। साथ ही दो घड़े, एक तलवार और एक ढाल भी धारण किया हुआ है। यह रूप स्कंदमाता की तरह ही है इसलिए स्कंदमाता और संतान लक्ष्मी को एक समान माना जाता है।
- छठा स्वरूप - मां लक्ष्मी के छठे स्वरूप की बात करें तो वह वीरलक्ष्मी हैं। अपने नाम के अनुसार यह स्वरूप जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त के लिए वीरता प्रदान करता है। देवी वीरलक्ष्मी ने अपनी आठ भुजाओं में विभिन्न तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। इनकी पूजा युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए की जाती है।
- सातवां स्वरूप - मां अष्टलक्ष्मी का सातवां स्वरूप विजयलक्ष्मी को माना गया है। यहां वियज का अर्थ है जीत। मां लक्ष्मी का यह स्वरूप अपने भक्तों को अजय-अभय प्रदान करता है। ऐसे में किसी भी संकट में फंसे लोग विजय प्राप्ति के लिए मां विजयलक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं।
- आठवां स्वरूप - विद्यालक्ष्मी को मां अष्टलक्ष्मी का आठवां स्वरूप माना गया है। अपने नाम की भांति ही विद्यालक्ष्मी साधको को शिक्षा और ज्ञान प्रदान करती हैं। साथ ही इनकी आराधना करने से भक्तों की बौद्धिक क्षमता में भी वृद्धि होती है।