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Diwali 2024: इस व्रत कथा के बिना अधूरी है मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा, नहीं होगी कभी धन की कमी

धार्मिक मत है कि दीवाली के दिन (Diwali Essential Vrat Katha) धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। वहीं भगवान गणेश की पूजा करने से शुभ कार्यों में सफलता मिलती है। इस शुभ अवसर पर लक्ष्मी गणेश जी की पूजा की जाती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 31 Oct 2024 10:02 AM (IST)
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Diwali 2024: मां लक्ष्मी को कैसे प्रसन्न करें ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में दीवाली का विशेष महत्व है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक महीने में अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। धार्मिक मत है कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर की दरिद्रता दूर हो जाती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि मां लक्ष्मी बेहद चंचल हैं। एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं ठहरती हैं। इसके लिए नियमित रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। अगर आप भी धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो दीवाली के दिन भक्ति भाव से मां लक्ष्मी (Lord Ganesh Puja Vidhi) की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय यह व्रत कथा (Diwali 2024 Vrat Katha) अवश्य पढ़ें।

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व्रत कथा

सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में राजा बलि का वर्चस्व तीनों लोक में फैला था। राजा बलि न केवल महान योद्धा थे, बल्कि दानवीर भी थे। इसके चलते तीनों लोकों में उनकी चर्चा होती थी। इसी दौरान राजा बलि ने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र देव को पदच्युत (हटा) कर दिया। सत्ता छीन जाने के बाद स्वर्ग नरेश इंद्र यत्र-तत्र भटकने लगे थे। उस समय इंद्र की मां अदीति, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंची और अपनी आपबीती एवं मन की व्यथा सुनाई।

मां अदीति को दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- हे माते! आप बिलकुल भी चिंतित न रहें। भविष्य में मेरा जन्म आपके गर्भ से होगा। उस समय इंद्र देव को पुन: स्वर्ग की गद्दी मिल जाएगी। अतः आप प्रसन्न होकर जाएं और सही समय की प्रतीक्षा करें। कालांतर में मां अदिति ने भगवान विष्णु की कठिन उपासना की। मां अदिति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु वामन रूप में अवतरित हुए। काल गणना के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन वामन अवतार रूप में अवतरित हुए थे।

कुछ समय बाद दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की सलाह पर राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के सफल होने पर राजा बलि तीनों लोकों के विजेता बन जाते। राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ की सफलता के लिए तीनों लोकों को आमंत्रित किया। आमंत्रण पाने के बाद भगवान विष्णु भी वामन रूप में पहुंचे। वामन ब्राह्मण का राजा बलि ने आदर-सत्कार किया। वामन देवता के लौटने के क्रम में राजा बलि ने दान देने की इच्छा जताई।

हालांकि, वामन देव ने दान लेने की सहमति नहीं दी। इसके बाद पुनः राजा बलि ने दान देने की बात की। तब वामन देव ने तीन पग भूमि ही मांगी। यह सुन राजा बलि मन ही मन मुस्कराने लगे और मानो! ये तो कुछ नहीं है। ऐसा सोच तत्क्षण देने की बात कही। तब भगवान विष्णु ने एक पग में भूमि, तो दूसरे पग में नभ माप लिया। तीसरे पग के लिए भूमि नहीं बची, तो राजा बलि ने अपना मस्तिष्क भगवान विष्णु के पग के नीचे रख दिया।

भगवान विष्णु के पैर रखते ही राजा बलि पाताल लोक में जा पहुंचे। यह सब देख राजा बलि भगवान नारायण को पहचान गये। तब भगवान विष्णु ने राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने साथ पाताल में रहने का वर मांगा। भगवान विष्णु ने राजा बलि के वरदान को स्वीकार कर लिया। इधर इंद्र देव को स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त हो गया। उधर भगवान विष्णु के बैकुंठ न लौटने पर मां लक्ष्मी चिंतित हो उठीं।

जब उन्हें भगवान विष्णु के पाताल लोक में रहने की जानकारी हुई। तब मां लक्ष्मी रक्षा सूत्र लेकर पाताल लोक पहुंची। वहां, राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया। इससे प्रसन्न होकर राजा बलि ने वर मांगने को कहा। तब मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त करने का वरदान माँगा, जिसे राजा बलि ने स्वीकार कर लिया। लेकिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने से पहले राजा बलि ने एक और वर मांग लिया।

इस वर के तहत श्रावण पूर्णिमा से लेकर धनतेरस तक पाताल लोक में रहने का अनुरोध किया। लक्ष्मी नारायण जी ने राजा बलि की विनती को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जब भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी बैकुंठ लौटे तो दीप पर्व दीवाली मनाया गया। कहा यह भी जाता है कि धनतेरस से लेकर दीवाली तक अपनी बहन मां लक्ष्मी की पूजा करने का भी वरदान राजा बलि ने मांगा था। इसके लिए धनतेरस से लेकर दीवाली तक मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi Vrat Katha) की पूजा की जाती है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।