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Madhurashtakam: पाना चाहते हैं भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद, तो पूजा के समय जरूर करें मधुराष्टकम् का पाठ

पवित्र धर्मग्रंथ गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने शिष्य और परम मित्र अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं- पार्थ ! भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए लोग अपने आराध्य की पूजा करते हैं। ऐसे लोग माया में फंसे रहते हैं। उनके मन में काम क्रोध और लोभ छिपा होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 30 May 2023 03:27 PM (IST)
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Madhurashtakam: पाना चाहते हैं भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद, तो पूजा के समय जरूर करें मधुराष्टकम् का पाठ
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Madhurashtakam: सनातन धर्म में बुधवार के दिन भगवान श्रीकृष्ण संग श्रीराधा रानी की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की भी पूजा करने का विधान है। अतः साधक श्रद्धा भाव से अपने इष्ट देव की पूजा-उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आध्यात्म जीवन निर्वाह करने वाले साधक ही भगवान के अनन्य भक्त बन पाते हैं। भौतिक सुखों में लिप्त साधक भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत नहीं हो पाते हैं। काम क्रिया में लिप्त, क्रोध और लोभ करने वाले लोगों को कभी भगवान श्रीकृष्ण दरबार में स्थान नहीं प्राप्त होता है। पवित्र धर्मग्रंथ 'गीता' में भगवान श्रीकृष्ण अपने शिष्य और परम मित्र अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं- पार्थ ! भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए लोग अपने आराध्य की पूजा करते हैं। ऐसे लोग माया में फंसे रहते हैं। उनके मन में काम, क्रोध और लोभ छिपा होता है। वह प्रिय वस्तु या प्रिया हेतु ईश्वर की पूजा करते हैं। किन्तु जिसकी बुद्धि स्थिर है। जिसने मन को जीत लिया है। ऐसे लोग ही मेरे शरणागत आते हैं। मैं उसका उद्धार करता हूँ। तुम मेरे शरणगत हो। मैं तुम्हारा भी उद्धार करूंगा। अतः तन, मन, धन सबकुछ समर्पित कर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इससे कृष्ण कन्हैया प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण संग राधा रानी की कृपा पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन विधिवत पूजा करें। साथ ही पूजा के समय मधुराष्टकम् का पाठ करें। आइए, मधुराष्टकम् स्तुति पढ़ें-

मधुराष्टकम्

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।

हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।

चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।

नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।

रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।

वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।

सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।

दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।

दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।