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Saptamatrika: क्या सच में सप्त मातृ देवियों की पूजा करने से घर में होता है रक्षा कवच का निर्माण?

Saptamatrika इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि प्राचीन समय में सप्त मातृ देवियों की विशेष पूजा की जाती थी। इन्हें सप्त मातृ देवियां और सप्तमातृका कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो साल 2019 में दक्षिण भारत में सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख की खोज की गई। इस शिलालेख में राजा द्वारा सप्तमातृका मंदिर बनाने के आदेश का वर्णन है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 23 Aug 2023 10:00 AM (IST)
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Saptamatrika: क्या सच में सप्त मातृ देवियों की पूजा करने से घर में होता है रक्षा कवच का निर्माण?
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Saptamatrika: सनातन धर्म में हर वर्ष कुल चार नवरात्रि मनाई जाती है। इनमें दो गुप्त नवरात्रि हैं, जो क्रमशः माघ और आषाढ़ महीने में मनाई जाती हैं। इसके अलावा, चैत्र और अश्विन महीने में नवरात्रि मनाई जाती है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की देवियों की पूजा-उपासना की जाती हैं। दस महाविद्याओं की देवियां मां काली, मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी, मां कमला हैं। इन देवियों की पूजा करने से विषम कार्य में भी सिद्धि प्राप्त हो जाती है। तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक गुप्त नवरात्रि के दौरान दस महाविद्याओं की देवियों की कठिन साधना करते हैं। इससे उन्हें विशेष विद्या और मायावी बल की प्राप्ति होती है। साथ ही घर और सिद्धि करने वाले स्थानों पर रक्षा कवच का निर्माण होता है। इस रक्षा कवच के चलते साधक पर कोई बुरी बला नहीं आती है। अगर आती भी है, तो टल जाती है। आसान शब्दों में कहें तो जगत जननी आदिशक्ति सभी प्रकार के अशुभ प्रभावों को तत्क्षण समाप्त कर देती हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा-उपासना करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि प्राचीन समय में केवल सप्त मातृ देवियों की पूजा की जाती थी? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

सप्तमातृका

इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि प्राचीन समय में सप्त मातृ देवियों की विशेष पूजा की जाती थी। इन्हें सप्त मातृ देवियां और सप्तमातृका कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो साल 2019 में दक्षिण भारत में सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख की खोज की गई। इस शिलालेख में राजा द्वारा सप्तमातृका मंदिर बनाने के आदेश का वर्णन है। तत्कालीन समय में सप्त मातृ देवियां इन्द्राणी, कौमारी, वाराही, ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी और चामुण्डा या नारसिंही हैं। इतिहासकारों की मानें तो नेपाल में सप्तमातृका की जगह पर अष्टमातृकाओं की पूजा की जाती है।

कौन हैं सप्तमातृका ?

मार्कन्डेय पुराण के अनुसार, कालांतर में शुंभ-निशुंभ असुरों के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। उस समय जगत जननी आदिशक्ति से शुंभ-निशुंभ असुरों का भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में असुरों की सेना का संचालन रक्तबीज नामक राक्षस कर रहा था। रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की हर एक बूंद से (धरती से स्पर्श करने पर) नए रक्तबीज का जन्म होगा। उस समय माता सप्त मातृ देवियों ने असुरों के नाश हेतु जगत जननी आदिशक्ति की सहायता की। हालांकि, इस प्रसंग में व्यापक विस्तार है। उस समय से सप्त मातृ देवियों की पूजा-उपासना की जाती है।

गुप्त सम्राज्य

इतिहासकारों की मानें तो आचार्य चाणक्य मौर्य साम्राज्य के समकालीन थे। आचार्य चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आसान शब्दों में कहें तो नंद वंश के विनाश के सूत्रधार आचार्य चाणक्य थे। उन्होंने नंद वंश को खत्म करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी हथियार अपनाएं। इसी कड़ी में एक बार आचार्य चाणक्य साधु का रूप धारण कर धनानंद के नगर में गए। वहां, उन्हें पता चला कि उस नगर की रक्षा सप्तमातृका कर रही थीं। उस समय चाणक्य ने नगर के लोगों को सप्त मातृ देवियों की मूर्तियां हटाने की सलाह दी। जैसे ही नगर वासियों ने सप्त मातृ देवियों की मूर्तियां हटाई। उसी समय मौर्य की सेना ने नंद नगर पर आक्रमण कर दिया। इसमें मौर्य सेना को विजय प्राप्त हुई। ऐसा कहा जाता है कि सप्त मातृ देवियों की पूजा करने के चलते नंद नगर में रक्षा कवच बना था।

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