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Dussehra 2022: प्रभु श्री राम के इन गुणों को अपनाने से व्यक्ति को मिलती है सफलता

Dussehra 2022 5 अक्टूबर 2022 को देशभर में दशहरा पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाएगा। इस दिन को बुराई पर हुई अच्छे की जीत का प्रतीक माना जाता है। साथ ही भगवान श्री राम के गुणों को स्मरण किया जाता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Tue, 04 Oct 2022 06:01 PM (IST)
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Dussehra 2022: श्री राम के गुणों से जरूर सीखनी चाहिए यह बातें।
नई दिल्ली, Dussehra 2022: कल यानि 5 अक्टूबर 2022 को देशभर में धूमधाम से विजय दशमी पर्व मनाया जाएगा। यह वही दिन है जब भगवान श्रीराम ने अधर्म पर विजय प्राप्त करते हुए रावण का वध किया था और माता सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था। लेकिन इन सभी से अधिक यह विषय भी महत्वपूर्ण है कि कैसे कई विषम परिस्थितियों में भी श्री राम ने स्थिति पर नियंत्रण रखते हुए सफलता प्राप्त की। साथ ही किस तरह उन्होंने सदैव न्याय और सत्य का साथ दिया। यही कारण है कि धर्मग्रंथों में और आम बोलचाल में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम से जाना जाता है। माना यह भी जाता है कि अगर एक व्यक्ति में भगवान श्री राम के कुछ गुण भी आ जाते हैं तो वह सफलता के मार्ग पर अपने आप चल पड़ता है। आइए विजयदशमी पर्व के मौके पर जानते हैं श्री राम के ऐसे 4 गुण जिन्हें अपनाने से व्यक्ति को मिलती है सफलता।

बने सहनशील और धैर्यवान

श्री राम ने हर विकट परिस्थिति में धैर्यवान रहकर समस्याओं का हल निकाला था। उन्होंने 14 वर्ष के वनवास को भी सहनशीलता के साथ पूरा किया था। यदि किसी व्यक्ति में यह गुण आ जाता है तो वह भी सफलता की ओर बढ़ता चला जाता है।

व्यक्ति में सदैव हो दया भावना

श्री राम का स्वभाव सदैव दयालु रहा। उन्होंने सन्यासी के वेश में और राजा के पद पर रहते हुए भी सभी पर एक समान दया दृष्टि बनाए रखी। सुग्रीव को राज्य दिलाना हो या शबरी का झूठे बेर खाना, यह उन्हीं के स्वभाव का एक हिस्सा था।

अच्छे मित्र

अयोध्या के राजा रहते हुए और 14 वर्षों के वनवास में भी भगवान श्री राम के हर वर्ग के मित्र बने और उन्होंने इस मित्रता को दिल से निभाया था। नाव चलाने वाला केवट हो, सुग्रीव हो या विभीषण सभी को खुले बाहों से स्वीकार किया था।

भाई बंधुओं के प्रति प्रेम भाव

भगवान श्रीराम ने जिस तरह अपने भाइयों को स्नेह दिया था ऐसा प्रेम भाव वर्तमान समय में बहुत कम देखने को मिलता है। 14 वर्षों के वनवास के बाद भी उनका स्नेह अपने छोटे भाई भरत, लक्षमण और शत्रुघ्न के लिए वैसा ही रहा जैसा अयोध्या को छोड़ने से पहले था।

डिसक्लेमर

इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।