Dussehra 2024: आखिर क्यों दशहरा पर नीलकंठ को देखना माना जाता है शुभ? जानें क्या है इससे जुड़ी मान्यता
सनातन धर्म में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी (Dussehra 2024 Neelkanth) तिथि पर भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। इस शुभ तिथि पर भगवान राम ने रावण का वध किया था। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर शमी और अपराजिता पूजा भी की जाती है। शमी पेड़ की पूजा करने से साधक को शत्रु पर विजयश्री प्राप्त होती है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sat, 12 Oct 2024 09:19 AM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र का समापन आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को होता है। इस शुभ अवसर पर विजयादशमी एवं दशहरा मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इन नौ दिनों में ममतामयी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों दशहरा के शुभ अवसर पर नीलकंठ (Dussehra 2024 Neelkanth) को देखा जाता है और इसका धार्मिक महत्व क्या है ? आइए जानते हैं-
धार्मिक महत्व
सनातन शास्त्रों में निहित है कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान श्रीराम और दशानन रावण के मध्य चल रहे युद्ध का अंत हुआ था। दशहरा के दिन पर भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था। इससे पूर्व भगवान श्रीराम ने शमी पेड़ की पूजा की थी। साथ ही शमी के पत्ते को स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस उपलक्ष्य पर अयोध्या में विजय पर्व दशहरा मनाया गया था। तत्कालीन समय से हर वर्ष शारदीय नवरात्र के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है। इसी दिन जगत की देवी मां दुर्गा ने महिषासुर का भी वध किया था। इसके लिए आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन विजयादशमी और दशहरा मनाया जाता है।ऐसा कहा जाता है कि रावण वध के चलते भगवान राम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्रीराम ने शिवजी की कठिन तपस्या की थी। भगवान राम की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने नीलकंठ रूप में दर्शन दिए थे। उस समय भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली थी। इसके लिए दशहरा के दिन नीलकंठ का दर्शन करना शुभ माना जाता है। नीलकंठ के दर्शन मात्र से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
यह भी पढ़ें: यहां जलाया नहीं बल्कि पूजा जाता है रावण, खुद को भाग्यशाली मानते हैं गांव के लोगअस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।