Dussehra 2024: क्या सच में थे रावण के 10 सिर? इन बुराइयों का माने जाते हैं प्रतीक
आज यानी शनिवार 12 अक्टूबर को पूरे देश में दशहरे का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन को भगवान श्रीराम की रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण को दशानन भी कहा जाता है क्योंकि उसके दस सिर थे। ऐसा माना जाता है कि रावण के 10 सिर अलग-अलग प्रकार की बुराइयों को दर्शाते हैं चलिए जानते हैं इस विषय में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दशहरे के दिन ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की स्थापना की थी। इसलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं इस दिन को विजयादशमी (Vijayadashami 2024) के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इसी तिथि पर मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया था।
इस दिन लोग रावण का पुतला बनाकर उसका दहन करते हैं और रावण दहन के साथ-साथ अपने अंदर की बुराइयों के दहन का भी संकल्प लेते हैं। साथ ही रावण दहन इस बात का भी संकेत है कि कोई बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो, लेकिन उसकी हार निश्चित है।
क्या सच में थे दस सिर
हमने रावण के सभी चित्रों में उसे 10 सिर के साथ ही देखा होगा। 10 सिर होने के कारण ही रावण को दशानन नाम भी मिला था। रावण को दशानन कहे जाने के पीछे एक नहीं, बल्कि कई मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसा भी कहा जाता है रावण के 10 सिर शाब्दिक रूप से सत्य नहीं थे, बल्कि यह उसकी विभिन्न मानसिक और शारीरिक शक्तियों का प्रतीक माने जाते हैं।
10 सिर का भ्रम
साथ ही जैन धर्म के शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि रावण अपने गले में 09 मणियों की माला धारण करता था। उन मणियों में रावण के सिर का प्रतिबिंब दिखाई देता था। ऐसे में रावण के 10 सिर होने का भ्रम पैदा होता था। और तभी से माना जाने लगा कि कारण के 10 सिर थे।
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शिव जी से मिला था आशीर्वाद
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि रावण, शिव जी का परम भक्त था। उसने अपनी घोर तपस्या से महादेव को प्रसन्न किया और महादेव ने उसे दशानन होने का आशीर्वाद दिया।
इस 10 बुराइयों का प्रतीक
ऐसा माना जाता है कि, रावण के 10 सिर व्यक्ति के भीतर मौजूद 10 बुराइयों, स्वभाव और कमजोरियों को दर्शाते हैं, जो इस प्रकार हैं - काम (वासना), क्रोध, लोभ (लालच), मोह, भ्रष्टाचार, भय, निष्ठुरता (दया की कमी), अहंकार, ईर्ष्या और झूठ बोलना। ऐसे में रावण दहन द्वारा इस बुराइयों का दहन भी किया जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि रावण दहन के साथ-साथ व्यक्ति को अपने भीतर मौजूद इन बुराइयों को भी दहन करने का संकल्प लेना चाहिए।
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