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Eid Al Adha 2024 Date: भारत में इस दिन मनाई जाएगी बकरीद, जानें धार्मिक महत्व और इतिहास

इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जुल-हिज्जा के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है। इस प्रकार साल 2024 में 17 जून को बकरीद है। यह त्योहार इस्लाम धर्म के लोगों के लिए दूसरा बड़ा पर्व है। बकरीद के आने से पहले लोग तैयारियां शुरू कर देते हैं। आइए जानते हैं इस पर्व का धार्मिक महत्व और इतिहास (Eid Al Adha History) के बारे में।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 10 Jun 2024 11:16 AM (IST)
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Eid Al Adha 2024 Date: भारत में इस दिन मनाई जाएगी बकरीद, जानें धार्मिक महत्व और इतिहास
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Eid Al Adha 2024: इस्लाम धर्म में ईद अल अजहा यानी बकरीद का त्योहार बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जुल-हिज्जा के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 17 जून (Bakrid 2024 date) 2024 को पड़ रहा है। इसी महीने में लोग हज यात्रा पर जाते हैं। यह त्योहार इस्लाम धर्म के लोगों के लिए दूसरा बड़ा पर्व (Eid Ul Adha 2024) है। बकरीद के आने से पहले लोग तैयारियां शुरू कर देते हैं और नए कपड़े खरीदते हैं। इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो बकरीद के त्योहार को रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद मनाया जाता है।  

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क्या है बकरीद का महत्व

ईद-अल-अजहा को बकरीद इस वजह से भी कहा जाता है, क्योंकि इस पर्व पर मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी करते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईद-अल-अजहा को कहीं भी बकरीद नहीं कहा जाता है।

बकरीद का इतिहास

इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद ने अपना जीवन खुदा को समर्पित कर दिया था। वह रोजाना खुदा की इबादत किया करते थे। उनकी इबादत से खुदा अधिक प्रसन्न हुए। एक बार का समय था कि उन्होंने पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के बारे में सोचा। परीक्षा में खुदा ने पैगंबर मोहम्मद से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी की मांग की। उस दौरान उनके पास सबसे कीमती चीजों में उनका बेटा ही था, जो कई वर्षों के पश्चात मिला था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया। पैगंबर मोहम्मद से अल्लाह अधिक प्रसन्न हुए। पैगंबर मोहम्मद अपने बेटे को कुर्बान होते हुए देख नहीं सकते थे, क्योंकि वह अपने बेटे को बहुत प्यार करता था। इसी वजह से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे को कुर्बान कर दिया। जब उन्होंने अपनों आंखों पर से पट्टी हटाई, तो पैगंबर मोहम्मद ने देखा कि उनके बगल में उनका पुत्र खड़ा था और कुर्बान बकरा हुआ। तभी से इस दिन को हर साल बकरीद के रूप में मनाया जाता है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।