Gajmukh Katha: गणेश जी को इसलिए लगा हाथी का सिर, गजासुर का वरदान बना वजह
आपने गणेश जी के स्वरूप में देखा होगा कि उनका शरीर तो मानव का है लेकिन मुख एक हाथी का है। इसके पीछे की कथा तो लगभग सभी को ज्ञात होगी लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि गणेश जी को केवल हाथी का मुख ही क्यों लगा। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा मिलती है। तो चलिए जानते हैं वह कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं में गणेश जी को एक विशेष स्थान प्राप्त है। उन्हें प्रथम पूज्य देव भी कहा जाता है, क्योंकि किसी भी धार्मिक कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा जरूरी मानी जाती है। इसी के साथ गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है, क्योंकि वह अपने भक्तों के सभी दुख-दर्द हर लेते हैं।
गजासुन ने मांगा शिव जी से वरदान
पौराणिक कथा के अनुसार, गजासुर नामक एक राक्षस भगवान शिव का परम भक्त था। गजासुर का सिर हाथी का था। उनसे महादेव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। उसकी कड़ी तपस्या देखकर शिव जी अति प्रसन्न हुए और उसे दर्शन दिए। तब शिव जी ने गजासुर से एक वरदान मांगने को कहा। इस पर गजासुर ने महादेव को ही मांग लिया, जिसमें उसने कहा कि आप कैलाश छोड़कर मेरे पेट में समा जाइए। अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के खातिर शिव जी उसके पेट में समा गए।
भगवान विष्णु ने सितार वादक का रूप
शिव जी के गजासुर के पेट में विराजमान होने के बाद माता पार्वती चिंतित हो गई। तब उन्होंने भगवान विष्णु जी का स्मरण किया और उनसे शिव जी को वापिस कैलाश पर लाने को कहा। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए भगवान विष्णु ने एक योजना रची। अपनी लीला से विष्णु जी ने सितार वादक का रूप धारण किया और ब्रह्मा जी ने तबला वादक का। नंदी को नाचने वाला बैल बनाया गया।
इसी रूप में तीनों गजासुर के दरबार में पहुचें। नंदी ने अपना अद्भुत नृत्य दिखाकर गजासुर को प्रसन्न कर लिया। जिस पर गजासुर ने नंदी को एक वरदान मांगने को कहा। तब नंदी अपने असली रूप में प्रकट हुए और उन्होंने वरदान में शिव जी को वापस करने की मांग की। वचन के अनुसार, गजासुर से शिव जी को पेट से बाहर निकाल दिया।
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