Ganesh Ji First Avatar Vakratund: गणेश जी के पहले अवतार हैं वक्रतुंड, जानें क्या है इनके अवतरित होने की कथा
Ganesh Ji First Avatar Vakratund पूरे देश में गणेश उत्सव चल रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री गणेश ने मानव कल्याण हेतू कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 24 Aug 2020 07:19 AM (IST)
Ganesh Ji First Avatar Vakratund: पूरे देश में गणेश उत्सव चल रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री गणेश ने मानव कल्याण हेतू कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। मान्यता है कि गणेश जी ने 8 बार अवतार लिया है। गणेश जी ने मनुष्यों को असुरी शक्तियों से बचाने के लिए कई अवतार लिए थे। इनका वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो में किया गया है। गणेश जी के इन 8 अवतारों में वक्रतुंड, गजानन, एकदंत, विघ्नराज, महोदर, लंबोदर, विकट, और धूम्रवर्ण शामिल हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको गणेश जी के पहले अवतार यानी वक्रतुंड के बारे में बता रहे हैं।
जानें गणेश जी ने क्यों लिए वक्रतुंड अवतार:शास्त्रों के अनुसार, राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए गणेश जी ने वक्रतुंड का अवतार लिया था। मत्सरासुर शिव जी का परम भक्त था। राक्षस मत्सरासुर को शिव जी से अभय होने का वरदान प्राप्त था। यह वरदान पाने के बाद उसने सभी देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया था।शास्त्रों के अनुसार वक्रतुंड अवतार ब्रह्मा को धारण करना था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र के प्रमाद से ही मत्सरासुर का जन्म हुआ था। मत्सरासुर ने शुक्राचार्य की प्रेरणा और पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का जप किया और इसके फलस्वरुप शिवजी ने इसे वरदान दिया। इसी वरदान के बल पर इसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सिर्फ तीनों लोकों पर ही नहीं बल्कि कैलाश और वैकुंठ पर भी इस राक्षस ने अपना कब्जा जमा लिया था। यह सब उसने देवगुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर किया था।
राक्षस मत्सरासुर से निजात पाने के लिए सभी देवगण शिव जी के पास पहुंचे। शिव जी ने उनसे गणेश जी का आह्वान करने के लिए कहा। सभी देवताओं ने भगवान दत्तात्रेय के साथ मिलकर वक्रतुंड के एकाक्षरी मंत्र का आह्वान किया। इसी मंत्र के प्रभाव से पशुपतिनाथ ने गणेश जी के वक्रतुंड अवतार को प्रकट किया। सभी देवताओं ने वक्रतुंड अवतार से मत्सरासुर से उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए कहा। गणेश जी ने वक्रतुंड अवतार में मत्सरासुर और उसके सहयोगियों को पराजित कर दिया। मत्सरासुर के साथ उसके 2 पुत्र भी थे जिनके नाम सुंदरप्रिय और विषयप्रिय थे। युद्ध में इसके दोनों पुत्र मारे गए। तब से राक्षस मत्सरासुर गणपति का परम भक्त हो गया था। इसके बाद गणेश जी ने देवताओं को निर्भय होने का आशीर्वाद दिया।