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Ganesh Katha: जब विष्णु जी और लक्ष्मी जी के विवाह में हुआ था गणेश जी का अपमान, पढ़ें यह कथा

Ganesh Katha जागरण आध्यात्म आपके लिए गणेश जी के जन्मोत्सव यानी गणेश चतुर्थी तक गणपति बप्पा से जुड़ी कुछ पौरणिक कथाएं ला रहा है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 21 Aug 2020 10:00 AM (IST)
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Ganesh Katha: जब विष्णु जी और लक्ष्मी जी के विवाह में हुआ था गणेश जी का अपमान, पढ़ें यह कथा

Ganesh Katha: जागरण आध्यात्म आपके लिए गणेश जी के जन्मोत्सव यानी गणेश चतुर्थी तक गणपति बप्पा से जुड़ी कुछ पौरणिक कथाएं ला रहा है। अभी तक हम आपको गणेश जी से जुड़ी तीन कथाओं की जानकारी दे चुके हैं। पहली कथा में बताया गया था कि किस तरह माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी की रचना की थी। वहीं, दूसरी कथा में बताया गया था कि गणेश जी गजानन कैसे बने। फिर तीसरी कथा में गणेश जी एकदंत कैसे कहलाए ये वर्णित था। आज हम आपके लिए गणेश जी से जुड़ी एक और कथा लाए हैं जिसमें ये बताया गया है कि जब विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी का विवाह निश्चित हुआ और गणेश जी का निमंत्रण नहीं भेजा गया तो क्या हुआ था। तो चलिए पढ़ते हैं यह कथा।

जब विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मीजी के साथ तय हो गया था तब सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया। लेकिन गणेश जी को नहीं बुलाया गया। ऐसे में जब भगवान विष्णु की बारात जाने लगी तो सभी ने इस बात पर चर्चा शुरू कर दी कि गणेश जी कहां है। सभी ने विष्णु जी से पूछा कि गणेश जी कहां हैं तो विष्णुजी ने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेज दिया था। अगर गणेश आना चाहते थे वो अपने पिता के साथ आ जाते। इनमें से कुछ लोगों ने कहा कि वो बहुत ज्यादा खाते हैं वहीं, कुछ ने कहा कि अगर वो आ जाएं तो उन्हें घर की रक्षा के लिए यहीं बैठा दिया जाएगा।

जब यह बात गणेश जी को पता चला तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपनी मूषक सेना को भएजकर रास्ते को अंदर से खोखला करा दिया। जब वहां से बारात निकली तो रथ के पहिए धरती में धंस गए। रथों के पहिए बाहर निकालने की बहुत कोशिश की गई लेकिन नहीं निकल पाए। सभी ने अपने-अपने तरीके से कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। सब परेशान से कि अब क्या किया जाए। इस पर नारदजी ने कहा- गणेश जी का अपमान कर आप लोगों ने बिल्कुल अच्छा नहीं किया। अगर कार्य सिद्ध करना है तो उन्हें मनाकर लाना होगा। उनके आने से संकट टल सकता है। शंकर जी ने गणेश जी को लेने के लिए अपने दूत नंदी को भेजा। गणेश जी वहां आए उनका पूजन और आदर-सत्कार किया गया तक कहीं जाकर रथ के पहिए बाहर निकले।