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Ganga Dussehra 2024: कैसे हुआ धरती पर मां गंगा का अवतरण? पढ़ें इससे जुड़ी कथा

पौराणिक कथा (Ganga Dussehra 2024 Katha) के अनुसार प्राचीन समय में अयोध्या में महाराजा सगर रहते थे। उनके 60 हजार पुत्र थे। एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। ऐसे में इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। इस करण राजा के अश्वमेध यज्ञ में बाधा आ गई।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 03 Jun 2024 01:35 PM (IST)
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Ganga Dussehra 2024: कैसे हुआ धरती पर मां गंगा का अवतरण? पढ़ें इससे जुड़ी कथा
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ganga Dussehra 2024 Katha: हर साल ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 16 जून (Kab Hai Ganga Dussehra 2024) को मनाया जाएगा। शास्त्रों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर धरती पर मां गंगा का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ अवसर पर गंगा नदी में स्नान और पूजा करने से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। आइए जानते हैं कि आकाश से धरती पर मां गंगा का अवतरण कैसे हुआ था?

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ऐसे हुआ मां गंगा का अवतार

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में अयोध्या में महाराजा सगर रहते थे। उनके 60 हजार पुत्र थे। एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। ऐसे में इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। इस करण राजा के अश्वमेध यज्ञ में बाधा आ गई। राजा के साथ सभी पुत्रों ने घोड़े को खोजने की शुरुआत की, जिससे यज्ञ पूरा हो सके। अंत में वह मुनि के आश्रम में पहुंच गए। इस दौरान वहां पर महर्षि कपिल ध्यान अभ्यास कर रहे थे।  

वहीं, घोड़े को बंधा देख उन्हें विश्वास हो गया कि घोड़े की चोरी कपिल ऋषि ने ही की है। राजा सगर के पुत्रों ने कपिल ऋषि को ललकारा और अपमानित भी किया। उस समय कपिल ऋषि क्रोधित हो उठे और राजा सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया। ऐसे में यज्ञ खंडित हो गया।

इसके पश्चात महाराज सगर ने पुत्रों की आत्मा की शांति के लिए उपाय जाना। उन्होंने इस कार्य के लिए मां गंगा को धरती पर लाने का प्रयास किया। उस दौरान ऋषि ने धरती पर मौजूद सारा जल को ग्रहण कर लिया और धरती पूरी तरह से सुख गई। इसके बाद मां गंगा को धरती पर अवतरित करने के लिए महाराज सगर, अंशुमान और महाराजा दिलीप तपस्या ने की, लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। महाराजा दिलीप का पुत्र भगीरथ था। उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।

भगीरथ को इस कार्य में सफलता मिली। मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। हालांकि, मां गंगा के वेग को रोकने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उन्हें समेट लिया। मां गंगा को शिव की जटाओं में स्थान दिया तब एक शिखा से मां गंगा का धरती पर अवतार हुआ। भगीरथ ने रसातल में जाकर अपने पितरों को उद्धार किया। जब गंगा नदी में राजा सगर के पुत्रों की अस्थि मिली, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।    

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अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।