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Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी के दिन इस स्तोत्र से करें मां गंगा की पूजा, जीवन में आएगी संपन्नता

मां गंगा की उत्पत्ति वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुई थी इसलिए हर साल इस दिन को उनके जन्मोत्सव (Ganga Saptami 2024) के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही दिन है जब ब्रह्मा जी के कमंडल से मां गंगा का जन्म हुआ था। इस साल गंगा सप्तमी 14 मई 2024 को मनाई जाएगी।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 05 May 2024 12:47 PM (IST)
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Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी के दिन इस स्तोत्र से करें मां गंगा की पूजा
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ganga Saptami 2024: गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है। देवी गंगा की पूजा के लिए गंगा सप्तमी का पर्व बहुत शुभ माना गया है। मां गंगा की उत्पत्ति वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुई थी, इसलिए हर साल इस दिन को उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वही दिन है जब ब्रह्मा जी के कमंडल से मां गंगा का जन्म हुआ था। इस साल गंगा सप्तमी 14 मई, 2024 को मनाई जाएगी।

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॥ मां गंगा की स्तुति॥

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।

त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥

॥देवी गंगा स्तोत्र॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे

त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।

शङ्करमौलिविहारिणि विमले

मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥॥

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव

जलमहिमा निगमे ख्यातः ।

नाहं जाने तव महिमानं

पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥॥

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे

हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।

दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं

कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥॥

तव जलममलं येन निपीतं,

परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।

मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः

किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे

खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।

भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,

पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥॥

कल्पलतामिव फलदां लोके,

प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।

पारावारविहारिणि गङ्गे

विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥॥

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः

पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।

नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे

कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥॥

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे

जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।

इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे

सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥॥

रोगं शोकं तापं पापं

हर मे भगवति कुमतिकलापम्।

त्रिभुवनसारे वसुधाहारे

त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥॥

अलकानन्दे परमानन्दे

कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।

तव तटनिकटे यस्य निवासः

खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः

किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।

अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव

न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये

देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।

गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं

पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥॥

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां

भवति सदा सुखमुक्तिः ।

मधुराकान्तापज्झटिकाभिः

परमानन्दकलितललिताभिः ॥॥

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं

वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।

शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति

सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे

त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।

शङ्करमौलिविहारिणि विमले

मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥

श्री शङ्कराचार्य कृतं

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