Ganga Saptami 2024: मां गंगा की पूजा करते समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, मिट जाएंगे सारे पाप
धार्मिक मान्यता है कि गंगा नदी में केवल स्नान करने से व्यक्ति द्वारा किए सभी पाप कट जाते हैं। साथ ही आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। अतः साधक न केवल गंगा सप्तमी पर बल्कि सामान्य दिनों में भी गंगा स्नान करते हैं। वहीं गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा के उपलक्ष्य पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 13 May 2024 03:39 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ganga Saptami 2024: हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इस वर्ष 14 मई को गंगा सप्तमी है। सनातन शास्त्रों में मां गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि गंगा नदी में केवल स्नान करने से व्यक्ति द्वारा किए सभी पाप कट जाते हैं। साथ ही आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। अतः साधक न केवल गंगा सप्तमी पर बल्कि सामान्य दिनों में भी गंगा स्नान करते हैं। वहीं, गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा के उपलक्ष्य पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। अगर आप भी मां गंगा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गंगा सप्तमी पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से मां गंगा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय यह व्रत कथा जरूर पढ़ें।
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व्रत कथा
सनातन शास्त्रों में मां गंगा की उत्पत्ति का वर्णन है। त्रेता युग में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर अयोध्या में राज करते थे। उन्होंने अपने राज्य का व्यापक विस्तार किया। हालांकि, उनके मन में सम्राट बनने की गहन इच्छा थी। इसके लिए उन्होंने पंडितों से सलाह लेकर अश्वमेघ यज्ञ करने की ठानी और उन्होंने पुत्रों को घोड़े के साथ पृथ्वी भ्रमण की आज्ञा दी। राजा सगर के पुत्र जब पृथ्वी भ्रमण कर रहे थे। तभी अश्वमेघ घोड़ा खो गया। यह जानकारी उन्होंने अपने पिता को दी।
राजा सगर ने किसी भी कीमत पर अश्वमेघ घोड़ा लाने की सलाह दी। इसके बाद राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूंढते-ढूंढ़ते कपिला ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। उस स्थान पर घोड़े को बंधा देख उन्हें विश्वास हो गया कि घोड़े की चोरी कपिला ऋषि ने ही की है। राजा सगर के पुत्रों ने कपिला ऋषि को ललकारा और अपमानित भी किया। उस समय कपिला ऋषि क्रोधित हो उठे और तत्क्षण राजा सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया।
यह जानकारी राजा सगर को हुई। उस समय राजा सगर ने अम्सुमन को यह कार्य सौंपा। अम्सुमन अश्वमेघ घोड़ा लाने में सफल हुआ। साथ ही पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु उपाय भी जाना। उस समय कपिला ऋषि ने कहा-मां गंगा ही उनके पितरों का उद्धार कर सकती हैं। हालांकि, राजा सगर ने अपने पुत्रों को मोक्ष दिलाने के बजाय अश्वमेघ यज्ञ किया। इसके बाद अम्सुमन को सत्ता सौंप राजा सगर तपस्या हेतु वन चले गए। कालांतर में अम्सुमन समेत उनके पूर्वजों ने पितरों को उद्धार दिलाने हेतु मां गंगा की कठिन तपस्या की। इनमें किसी को सफलता नहीं मिली।
कालांतर में राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने राज त्याग कर हिमालय पर मां गंगा की तपस्या की। भगीरथ को इस कार्य में सफलता मिली। अंततः मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। हालांकि, मां गंगा के वेग को रोकने हेतु भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उन्हें समेट लिया। तब भगीरथ ने दोबारा मां गंगा की तपस्या की। उस समय मां गंगा ने भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी। भगवान शिव को प्रसन्न करने के बाद भगीरथ को पितरों को मोक्ष दिलाने में सफलता मिली।
इसी समय गंगा के वेग से जह्नु मुनि की यज्ञशाला बह गई। तब जह्नु मुनि ने गंगा नदी अपने में समाहित (निगलना) कर लिया। इस समय भी भगीरथ को जह्नु मुनि की तपस्या करनी पड़ी। तब वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को जह्नु मुनि ने अपने कानों से गंगा को बाहर निकाला। भगीरथ ने रसातल में जाकर अपने पितरों को उद्धार किया। जब गंगा नदी में राजा सगर के पुत्रों की अस्थि मिली, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
यह भी पढ़ें: भूलकर भी न करें ये 6 काम, वरना मां लक्ष्मी हो जाएंगी नाराजअस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।