Ganga Snan ka Mahatva: जानिए गंगा में स्नान का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व
Ganga Snan ka Mahatva हिंदू धर्म में गंगा स्नान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि गंगा स्नान से ना केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है बल्कि इसके वैज्ञानिक फायदे भी हैं?
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Ganga Snan ka Mahatva: भगवान शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा, जब हिमालय से होते हुए तराई क्षेत्रों में आती है तो इनका धार्मिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इसलिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में गंगा जल का प्रयोग निश्चित रूप से किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग गंगा में स्नान करते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गंगा में स्नान करने का आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है? कई शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि भी की है। आइए जानते हैं, क्या है गंगा में स्नान का अध्यात्मिक, वैज्ञानिक महत्व और मां गंगा के जन्म की पौराणिक कथा?
गंगाजल से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य
गंगाजल पर अब तक कई शोध हो चुके हैं। जिनमें से एक शोध लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी किया था, जिसमें उन्होंने पाया कि गंगाजल में बीमारी पैदा करने वाली ईकोलाई बैक्टीरिया मारने की क्षमता है। वैज्ञानिकों ने यह भी माना कि जब हिमालय से गंगा बहती हुई आती है तो कई खनिज और जड़ी-बूटियों का असर इस पर होता रहता है और उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने जांच में पाया कि गंगाजल में ऑक्सीजन को सोखने की अद्भुत क्षमता है। इसलिए गंगा के पानी में प्रचुर मात्रा में सल्फर होता है, जिससे पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता है। गंगा स्नान और गंगाजल पीने के पीछे भी वैज्ञानिकों ने कई प्रशिक्षण किए हैं, जिसमें उन्होंने पाया कि गंगाजल पीने से हैजा, प्लेग या मलेरिया जैसे रोग के खतरनाक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
गंगा स्नान का धार्मिक महत्व (Ganga Snan Benefits)
मां गंगा को मोक्षदायिनी के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पौराणिक काल से यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष दिन जैसे अमावस्या या पूर्णिमा तिथि के दिन गंगा जल में स्नान करने से साधक को देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ गंगा तट के किनारे श्राद्ध या तर्पण आदि करने से और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।
मां गंगा के जन्म की कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हुआ था। वेद एवं पुराणों में मां गंगा के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। वामन पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु वामन रूप अपनाया था, तब उन्होंने एक पैर आकाश की ओर उठाया था। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को एक कमंडल में भर लिया था। इस जल के तेज से गंगा का जन्म हुआ था। इसके बाद ब्रह्मा जी ने गंगा को पर्वतराज हिमालय को सौंप दिया और ऐसे देवी पार्वती और मां गंगा बहन हुई।
जब मां गंगा को हुआ था भगवान शिव से प्रेम
शिव पुराण की एक कथा के अनुसार, गंगा भी मां पार्वती की भांति भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने साथ रखने का वरदान दिया। वरदान के कारण जब मां गंगा धरती पर अपने पूरे वेग के साथ आईं तो जल प्रलय आ गया। इस प्रलय से बचाने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और तब से गंगा भगवान शिव की जटाओं से प्रवाहित हो रही हैं।
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