Move to Jagran APP

Geeta Jayanti 2021: श्रीमद् भागवत गीता के 5 श्लोक, जो देते हैं जीवन को सही दिशा

Geeta Jayanti 2021 महात्मा गांधी से लेकर आंइसटीन तक गीता से प्रेरणा और मार्गदर्शन पाते रहे हैं। इस गीता जंयती पर हम अपको गीता के 5 ऐसे श्लोक के बारे में बता रहे हैं जो आपके जीवन को सही दिशा और सफलता का मार्ग पाने में मदद करेंगे....

By Jeetesh KumarEdited By: Updated: Tue, 14 Dec 2021 11:15 AM (IST)
Hero Image
Geeta Jayanti 2021: श्रीमद् भागवत गीता के 5 श्लोक, जो देते हैं जीवन को सही दिशा
Geeta Jayanti 2021:  गीता जयंती का पर्व मार्गशीर्ष या अगहन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस साल गीता जंयती का पर्व 14 दिसंबर,दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार को गीता का अमृत संदेश दिया था। श्रीमद् भागवत गीता न केवल सनातन धर्म का पवित्र ग्रन्थ है बल्कि संपूर्ण विश्व और मनाव जाति को अनुपम भेंट है। गीता विषम से विषम परिस्थितियों में सही मार्गदर्शन प्रदान करती है। यही कारण है कि महात्मा गांधी से लेकर आंइसटीन तक अनेकों महापुरूष और मनीषी गीता से प्रेरणा और मार्गदर्शन पाते रहे हैं। इस गीता जंयती पर हम अपको गीता के 5 ऐसे श्लोक के बारे में बता रहे हैं जो आपके जीवन को सही दिशा और सफलता का मार्ग पाने में मदद करेंगे....

1-जीवन के संघर्ष से घबराने से नहीं, अपितु उसका सामना करने से सफलता मिलती है...

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।

2- सफलता पाने का मूल मंत्र है पूरी सामर्थ्य से प्रयास करना, परिणाम तय करना हमारे बस में नहीं है लेकिन सही प्रयास सही परिणाम देता है...

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।

3- अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाला मनुष्य ही संसार पर विजय प्राप्त करता है...

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

अर्थ: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधन पारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं।

4- क्रोध से मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है....

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

5 - यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

अर्थ: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की ग्लानि-हानि यानी उसका क्षय होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं श्रीकृष्ण धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'