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Gupt Navratri 2024: गुप्त नवरात्र पर जरूर करें मां काली की पूजा, जीवन की सभी बाधाओं का होगा नाश

आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्र को बहुत उत्तम माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो साधक इस दौरान उपवास रखते हैं मां उनसे जल्द प्रसन्न होती हैं और उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। अगर आप आषाढ़ गुप्त नवरात्र पर मां की पूर्ण कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको मां काली की खास पूजा करनी चाहिए।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Fri, 12 Jul 2024 02:54 PM (IST)
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Gupt Navratri 2024: आषाढ़ गुप्त नवरात्र -
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ गुप्त नवरात्र का पावन समय सभी देवी भक्तों के लिए बहुत खास होता है। इस बार इसकी शुरुआत 6 जुलाई, 2024 को हुई है। वहीं, इसका समापन 15 जुलाई को होगा। इस दौरान मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं (Mahavidhya) की पूजा का विधान है, जो उनका उग्र स्वरूप हैं। यह व्रत तंत्र साधना के लिए बहुत शुभ माना जाता है।

इसके अलावा इस दौरान मां काली की आराधना अवश्य करनी चाहिए। साथ भी उनकी चालीसा का पाठ भी परम फलदायी माना गया है, जो इस प्रकार है।

।।मां काली चालीसा।।

॥ दोहा ॥

जय काली जगदम्ब जय,हरनि ओघ अघ पुंज।

वास करहु निज दास के,निशदिन हृदय निकुंज॥

जयति कपाली कालिका,कंकाली सुख दानि।

कृपा करहु वरदायिनी,निज सेवक अनुमानि॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय काली कंकाली।

जय कपालिनी, जयति कराली॥

शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा।

जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा॥

आर्या, हला, अम्बिका, माया।

कात्यायनी उमा जगजाया॥

गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी।

दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी॥

पार्वती मंगला भवानी।

विश्वकारिणी सती मृडानी॥

सर्वमंगला शैल नन्दिनी।

हेमवती तुम जगत वन्दिनी॥

ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय।

महारात्रि जय मोहरात्रि जय॥

तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका।

कूष्माण्डा कार्तिका चण्डिका॥

तारा भुवनेश्वरी अनन्या।

तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या॥

धूमावती षोडशी माता।

बगला मातंगी विख्याता॥

तुम भैरवी मातु तुम कमला।

रक्तदन्तिका कीरति अमला॥

शाकम्भरी कौशिकी भीमा।

महातमा अग जग की सीमा॥

चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री।

ब्रह्मवादिनी मां गायत्री॥

रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला।

अग्निज्वाला तुम सर्वमंगला॥

मेघस्वना तपस्विनि योगिनी।

सहस्राक्षि तुम अगजग भोगिनी॥

जलोदरी सरस्वती डाकिनी।

त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी॥

पुष्टि तुष्टि धृति स्मृति शिव दूती।

कामाक्षी लज्जा आहूती॥

महोदरी कामाक्षि हारिणी।

विनायकी श्रुति महा शाकिनी॥

अजा कर्ममोही ब्रह्माणी।

धात्री वाराही शर्वाणी॥

स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी।

मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी॥

नाम रूप गुण अमित तुम्हारे।

शेष शारदा बरणत हारे॥

तनु छवि श्यामवर्ण तव माता।

नाम कालिका जग विख्याता॥

अष्टादश तब भुजा मनोहर।

तिनमहँ अस्त्र विराजत सुन्दर॥

शंख चक्र अरू गदा सुहावन।

परिघ भुशण्डी घण्टा पावन॥

शूल बज्र धनुबाण उठाए।

निशिचर कुल सब मारि गिराए॥

शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे।

रक्तबीज के प्राण निकारे॥

चौंसठ योगिनी नाचत संगा।

मद्यपान कीन्हैउ रण गंगा॥

कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि।

दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि॥

कर खप्पर त्रिशूल भयकारी।

अहै सदा सन्तन सुखकारी॥

शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा।

बजत मृदंग भेरी के बाजा॥

रक्त पान अरिदल को कीन्हा।

प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा॥

लपलपाति जिव्हा तव माता।

भक्तन सुख दुष्टन दु:ख दाता॥

लसत भाल सेंदुर को टीको।

बिखरे केश रूप अति नीको॥

मुंडमाल गल अतिशय सोहत।

भुजामल किंकण मनमोहन॥

प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी।

जगदम्बा कहि वेद बखानी॥

तुम मशान वासिनी कराला।

भजत तुरत काटहु भवजाला॥

बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर।

जहाँ बिराजत विविध रूप धर॥

विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई।

कहँ कालिका रूप सुहाई॥

शाकम्भरी बनी कहँ ज्वाला।

महिषासुर मर्दिनी कराला॥

कामाख्या तव नाम मनोहर।

पुजवहिं मनोकामना द्रुततर॥

चंड मुंड वध छिन महं करेउ।

देवन के उर आनन्द भरेउ॥

सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा।

अरिदल दलन लेहु अवतारा॥

खलबल मचत सुनत हुँकारी।

अगजग व्यापक देह तुम्हारी॥

तुम विराट रूपा गुणखानी।

विश्व स्वरूपा तुम महारानी॥

उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण।

करहु दास के दोष निवारण॥

माँ उर वास करहू तुम अंबा।

सदा दीन जन की अवलंबा॥

तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई।

ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई॥

विश्वरूप तुम आदि भवानी।

महिमा वेद पुराण बखानी॥

अति अपार तव नाम प्रभावा।

जपत न रहन रंच दु:ख दावा॥

महाकालिका जय कल्याणी।

जयति सदा सेवक सुखदानी॥

तुम अनन्त औदार्य विभूषण।

कीजिए कृपा क्षमिये सब दूषण॥

दास जानि निज दया दिखावहु।

सुत अनुमानित सहित अपनावहु॥

जननी तुम सेवक प्रति पाली।

करहु कृपा सब विधि माँ काली॥

पाठ करै चालीसा जोई।

तापर कृपा तुम्हारी होई॥

॥ दोहा ॥

जय तारा, जय दक्षिणा,कलावती सुखमूल।

शरणागत 'भक्त ' है,रहहु सदा अनुकूल॥

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