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Hanuman ji Stotra: हनुमान जी के इस स्तोत्र में है बड़ी शक्ति, इस विशेष दिन करें पाठ

Hanuman ji Stotra मंगलवार का दिन भगवान हनुमान की पूजा के लिए बेहद शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त संकट मोचन को प्रसन्न करना चाहते हैं या फिर उनकी पूरी कृपा पाना (Hanuman ji Puja Vidhi) चाहते हैं तो उन्हें प्रत्येक दिन श्री हनुमान स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए जो इस प्रकार हैं -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Mon, 27 Nov 2023 11:24 AM (IST)
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श्री हनुमान स्तोत्र का पाठ ऐसे करें -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Hanuman ji Stotra: श्री रामभक्त हनुमान जी की पूजा बेहद फलदायी मानी गई है। ऐसा कहा जाता है, बजरंगबली सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं, जिनकी पूजा से अपने सभी बिगड़े काम को बनाया जा सकता है। मंगलवार का दिन भगवान हनुमान की पूजा के लिए समर्पित है।

ऐसी मान्यता है कि जो जातक संकट मोचन को प्रसन्न करना चाहते हैं या फिर उनकी पूर्ण कृपा पाना चाहते हैं, तो उन्हें प्रत्येक दिन श्री हनुमान स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं-

श्री हनुमान स्तोत्र

''वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं। वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥१॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥३॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥५॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥६॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥७॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥८॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥९॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे। लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्''॥

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