Hariyali Teej 2024: हरियाली तीज पर गौरी पुत्र गणेश की पूजा से मिलेगा विशेष लाभ, घर में होगी सुख-समृद्धि की वर्षा
हरियाली तीज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। यह दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं उन्हें सदा सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में हरियाली तीज का पर्व बहुत भक्ति और भाव के साथ मनाया जाता है। यह शुभ दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर सुहागिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसका पालन करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही परिवार में खुशहाली आती है। इस साल यह शुभ पर्व 07 अगस्त को मनाया जाएगा।
वहीं, जब इस त्योहार को कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, तो आपको बता दें कि अगर आप इस व्रत का पालन कर रहे हैं, तो पूजा की शुरुआत भगवान गणेश से ही करें, क्योंकि उन्हें देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। साथ ही पुत्रों में छोटे होने की वजह से वह शिव-पार्वती के प्रिय पुत्र हैं, तो पूजा का फल दोगुना प्राप्त होगा। इसके अलावा इस दिन (Hariyali Teej 2024) गणेश चालीसा का पाठ भी बहुत ही कल्याणकारी माना गया है।
।।गणेश चालीसा।।
।।दोहा।।जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥।।चौपाई।।जय जय जय गणपति गणराजू।मंगल भरण करण शुभ काजू॥जय गजबदन सदन सुखदाता।विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥राजत मणि मुक्तन उर माला।स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥सुन्दर पीताम्बर तन साजित।चरण पादुका मुनि मन राजित॥धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।गौरी ललन विश्व-विख्याता॥ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे।मूषक वाहन सोहत द्घारे॥
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी।अति शुचि पावन मंगलकारी॥एक समय गिरिराज कुमारी।पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥अतिथि जानि कै गौरि सुखारी।बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा।मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।बिना गर्भ धारण, यहि काला॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना।पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥अस कहि अन्तर्धान रुप है।पलना पर बालक स्वरुप है॥बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना।लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं।सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥लखि अति आनन्द मंगल साजा।देखन भी आये शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।बालक, देखन चाहत नाहीं॥गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥कहन लगे शनि, मन सकुचाई।का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।शनि सों बालक देखन कहाऊ॥पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा।बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी।सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा।शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।काटि चक्र सो गज शिर लाये॥बालक के धड़ ऊपर धारयो।प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥चले षडानन, भरमि भुलाई।रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।शेष सहसमुख सके न गाई॥मैं मतिहीन मलीन दुखारी।करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥अब प्रभु दया दीन पर कीजै।अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥
श्री गणेश यह चालीसा।पाठ करै कर ध्यान॥नित नव मंगल गृह बसै।लहे जगत सन्मान॥